– पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘
मानिये न मानिये प्यार अँधा होता है। विरंचि बाबू फिर से बोकारो की उष्ण धरती को तारने के लिए भाजपा उम्मीदवार बना दिए गए हैं। अब अनुकम्पा के आधार पे भेजे गए हों या गुणवत्ता के आधार पर ; भेजे तो गए हैं भाजपा आलाकमानों की तरफ से ही। लेकिन यह तय है कि विरंचि बाबू को जनता के सामने फिर से अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी। यह भी सच्चाई है कि पिछले वर्षों में विरंचि बाबू ने कई बार जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश किया है। यही कारण है कि इस बार चुनाव में जनता और कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी साफ नजर आ रही है। लेकिन अगर आपको मोदी को जितना है तो उनके नुमाइंदों को ही वोट करना होगा। कहावत हैं न – “टेढ़ा है पर मेरा है ! “
खैर बीजेपी के प्यार में पागल बोकारो कि अधिकांश जनता झक मार के विरंचि बाबू को ही वोट करेगी। भले वह इतने वर्षों में जनता यहाँ तक कि भाजपाई कार्यकर्ताओं को कितना बार भी अपमान कर गए हों, बोकारो की जनता मोदी जी के नाम पर वोट देगी ही और भाजपा के समर्पित कार्यकर्त्ता भी मोदी जी के लिए कुछ न कुछ मेहनत करेंगे ही विरंचि बाबू को जीताने के लिए। हाँ अब उनमे उत्साह कितना रहेगा ? निराश सी जनता में उद्वेग कितना रहेगा यह तो विरंचि नारायण पर ही निर्भर करता है। यह चुनाव विरंचि बाबू के लिए परीक्षा की घड़ी है। अगर वे अपनी कथित ऊंचाई से नीचे आकर जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे, तो शायद वे लोगों का दिल फिर से जीत सकते हैं।
लहर के बहाव में कमी न आये इसके लिए प्रत्याशी को अपनी कथित उंचाई से जमीं पर उतरना ही होता है। ताव में रहने वालों के तो बड़े बड़े राज ढह गए ; विधायकी क्या चीज़ है ? ! बोकारो की जनता को विरंचि बाबू से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो है नहीं। बस सब उनके व्यवहार और निकम्मेपन से नाराज़ रहते हैं। बोकारो की जनता जिस जोश से भाजपा को वोट देती है तो उम्मीद्वार का भी फ़र्ज़ बनता है कि वह स्वयं को भाजपा के स्तर का बनाये। एक बार उम्मीदवार महोदय मोदी जैसे मेहनतकश दिख क्या गए देखिएगा बोकारो की जनता कैसे उन्हें हाथो हाथ उठा लेती है, सर कंधे पर बैठ लेती है।
बोकारो की जनता ने हमेशा भाजपा को जोरदार समर्थन दिया है, लेकिन यह समर्थन उम्मीदों से जुड़ा हुआ है। जनता चाहती है कि उनका उम्मीदवार मोदी जी की तरह मेहनतकश हो। अगर विरंचि बाबू ने यह दिखा दिया कि वे भी मेहनत करने को तैयार हैं, तो जनता उन्हें सिर-आंखों पर बिठा लेगी। लेकिन इस बार जनता का प्यार यूं ही नहीं मिलेगा, उन्हें इसे कमाना पड़ेगा।
ईश्वर करे कि विरंचि बाबू जनता का यह प्यार फिर से हासिल करें, वो फिर से चुनाव जीत जाएँ ! लेकिन इसके लिए उन्हें जनता के लिए समर्पण और सेवा का भाव दिखाना होगा। राष्ट्रहित के नाम पर जनता अपना कर्तव्य निभाएगी, लेकिन उम्मीदवारों का भी तो कुछ दायित्व बनता है। उन्हें भी आहुति देनी पड़ती है। विधायकी के लिए खड़ा प्रत्येक प्रबुद्ध जानता है कि उसकी जनता के लिए उसे अपनी किन चीज़ों की आहुति देनी होगी।
आसानी से नही मिलता
ये शौहरत का जाम.
काबिल-ए-तारीफ़ होने के
लिए वाकिफ़-ए-तकलीफ़ होना पड़ता है.
काश ऐसी बारिश आये जिसमें
अहम डूब जाए
मतभेद के किले ढह जाएं
घमंड चूर चूर हो जाए
गुस्से के पहाड़ पिघल जाए
नफरत हमेशा के लिए दफ़न हो जायेऔर हम सब
“मैं” से “हम” हो जाएं ….