कांग्रेस के भविष्य पर संकट: राहुल और प्रियंका की अनुभवहीनता का असर

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश। 

भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की मौजूदा स्थिति किसी से छिपी नहीं है। कभी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी हुआ करती थी, जो आज एक के बाद एक राज्यों में अपना अस्तित्व खोती जा रही है। इस पतन का एक प्रमुख कारण कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का अनुभवहीन होना है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, जो वर्तमान में पार्टी की बागडोर संभाल रहे हैं, राजनीतिक दृष्टि से अपरिपक्व साबित हो रहे हैं। यह सिर्फ उनका अनुभवहीन होना ही नहीं, बल्कि पार्टी के अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा करना भी है, जिसने कांग्रेस को आज इस संकट की स्थिति में डाल दिया है।

कांग्रेस के पास ऐसे कई दिग्गज नेता थे जिन्होंने पार्टी को बुरे से बुरे समय से उबारा। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, और यहां तक कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने कई बार अपनी खोई साख को वापस पाया। लेकिन वर्तमान में, आलाकमान का पूरा ध्यान केवल राहुल और प्रियंका पर केंद्रित है, जिनकी राजनीति में अभी तक कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं रही है। यह आलाकमान की बड़ी भूल रही है कि उसने पुराने, अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया और पार्टी की कमान ऐसे हाथों में सौंपी, जो नीतिगत समझ और राजनीतिक कौशल से अभी काफी दूर हैं।

वर्तमान स्थिति में पार्टी के ऐसे अनुभवी नेताओं जैसे कपिल सिब्बल, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, और अन्य वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर दी गई है। ये वे नेता थे जिन्होंने न सिर्फ पार्टी की नींव को मजबूत किया था बल्कि कई बार मुश्किल समय में पार्टी को पुनः खड़ा किया। इनके नेतृत्व में पार्टी को एक मजबूत दिशा मिलती, लेकिन उन्हें दरकिनार कर पार्टी की सत्ता राहुल और प्रियंका को सौंप दी गई है।

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का नेतृत्व पार्टी को जीत दिलाने में बार-बार विफल रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, और इसके बाद भी कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने सक्रिय भूमिका निभाई, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे। यहां तक कि उन राज्यों में भी, जहां कांग्रेस की कभी मजबूत पकड़ थी, जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान, पार्टी कमजोर होती जा रही है। इन परिणामों से साफ होता है कि युवा नेताओं की ऊर्जा तो है, परंतु अनुभव की भारी कमी उन्हें हर बार असफल कर रही है।

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके मौजूदा नेतृत्व के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है। राहुल और प्रियंका अक्सर जनसभाओं और रैलियों में जोश से भाषण देते हैं, लेकिन उनके भाषणों में नीतिगत स्पष्टता और राजनीतिक परिपक्वता की कमी दिखती है। उनकी बयानबाजी में आरोप-प्रत्यारोप का दौर ज्यादा होता है, परंतु कोई ठोस समाधान प्रस्तुत नहीं किया जाता। इसके विपरीत, जब पार्टी के अनुभवी नेता सक्रिय होते हैं, तो उनके पास जनता के लिए स्पष्ट योजनाएं और नीतिगत दृष्टिकोण होते हैं।

उदाहरण के तौर पर, कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में जब मुख्यमंत्री पद संभाला था, तब उन्होंने कई सुधारात्मक कदम उठाए थे, जिससे पार्टी को थोड़ी राहत मिली थी। लेकिन वर्तमान में, प्रदेश स्तर पर भी पार्टी नेतृत्व कमजोर हो गया है, क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर डाल दिया गया है।

कांग्रेस पार्टी के पास अभी भी समय है कि वह अपनी गलतियों को सुधारे और पार्टी की डूबती नैया को पार लगाने का प्रयास करे। इसके लिए सबसे पहला कदम यह होना चाहिए कि राहुल और प्रियंका को फिलहाल पार्टी की बागडोर से दूर रखा जाए और पार्टी का नेतृत्व अनुभवी नेताओं को सौंपा जाए। पार्टी के उन नेताओं को वापस लाना होगा, जिन्होंने कांग्रेस को हर संकट से उबारा था।

कपिल सिब्बल, कमलनाथ, मनीष तिवारी, और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के पास वर्षों का राजनीतिक अनुभव है, जो पार्टी को फिर से खड़ा कर सकते हैं। इनके पास न सिर्फ संगठन को मजबूत करने की क्षमता है, बल्कि जनता की नब्ज समझने का भी अनुभव है। ये नेता जानते हैं कि कैसे भाजपा जैसी सशक्त पार्टी के खिलाफ ठोस रणनीति तैयार की जाए और कैसे जनता का विश्वास वापस पाया जाए।

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को राजनीतिक परिपक्वता हासिल करने के लिए समय देना चाहिए। उन्हें अपने राजनीतिक अनुभव को और बढ़ाने की जरूरत है, ताकि वे भविष्य में पार्टी का नेतृत्व करने के योग्य बन सकें। कांग्रेस पार्टी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह साफ है कि अभी वे इस भूमिका के लिए तैयार नहीं हैं।

राहुल और प्रियंका के पास निश्चित रूप से पार्टी का भविष्य संभालने की क्षमता है, लेकिन इसके लिए उन्हें अभी और तैयारी करनी होगी। उन्हें जमीनी स्तर पर काम करने का अनुभव बढ़ाना चाहिए, अनुभवी नेताओं से सीखना चाहिए, और राजनीतिक निर्णयों में परिपक्वता लानी होगी। इसके साथ ही, उन्हें समझना होगा कि सिर्फ भाषणों और आंदोलनों से पार्टी का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता।

कांग्रेस पार्टी को अभी एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो तात्कालिक समस्याओं का समाधान कर सके और पार्टी को संकट से बाहर निकाल सके। जब तक राहुल और प्रियंका इस स्तर पर तैयार नहीं हो जाते, तब तक पार्टी की कमान उन नेताओं को सौंपनी चाहिए, जिन्होंने पहले भी कांग्रेस को संकट से उबारा है।

कांग्रेस पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन का है। पार्टी को यह समझना होगा कि अनुभवहीनता और गलत नेतृत्व के कारण पार्टी लगातार कमजोर हो रही है। अगर पार्टी अपना अस्तित्व बचाना चाहती है, तो उसे अनुभवी नेताओं को नेतृत्व सौंपने की जरूरत है। राहुल और प्रियंका को अभी और समय और अनुभव की जरूरत है, ताकि वे भविष्य में पार्टी का नेतृत्व प्रभावी ढंग से कर सकें। कांग्रेस को अपने पुराने गौरव को वापस पाने के लिए सही निर्णय लेने की आवश्यकता है, अन्यथा वह पूरी तरह से भारतीय राजनीति से बाहर हो सकती है।