ओ हरि जी! चरन कमल बलिहारी….. – ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है प्रभु श्रीराम जी के चरणकमल की वन्दना मेरी कलम से:–

ओ हरि जी! चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी…………
जेहि चरनन से सुरसरि निकली,
सारे जगत को तारी ।
जेहि चरनन से तरी अहिल्या,
पाहन से बनि गई नारी ।
ओ हरि जी! चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी…………
जेहि चरनन केवंट धोइ लिन्हा,
तब हरि पार उतारी ।
जेहि चरनन की चरनपादुका,
भरत रहे हिय धारी ।
ओ हरि जी! चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी…………
जेहि चरनन सुर नर मुनी सेवत,
हो गए परमपदधारी ।
जेहि चरनन ‘ब्रह्मेश्वर’ ध्यावत,
कब होइहैं किरिपा तुम्हारी ।
ओ हरि जी! चरन कमल बलिहारी ।
ओ हरि जी…………

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र