झारखंड में ‘सिल्वर इकोनॉमी’ की संभावनाएं और चुनौतियां

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और इसका असर झारखंड जैसे राज्यों पर भी देखा जा सकता है। वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार, 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस जनसंख्या को न केवल एक सामाजिक वर्ग के रूप में देखा जाना चाहिए, बल्कि एक नए आर्थिक अवसर के रूप में भी समझा जाना चाहिए। इसी संदर्भ में ‘सिल्वर इकोनॉमी’ की अवधारणा महत्वपूर्ण हो जाती है, जो वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं और उनकी खपत को केंद्र में रखकर विकसित की गई आर्थिक प्रणाली है।

सिल्वर इकोनॉमी वह आर्थिक व्यवस्था है, जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए उत्पादों और सेवाओं की मांग पर आधारित होती है। इसमें उनके स्वास्थ्य देखभाल, आवास, सुरक्षा, यात्रा, मनोरंजन, वित्तीय सेवाएं और उनके द्वारा की जाने वाली विभिन्न आर्थिक गतिविधियां शामिल होती हैं। सिल्वर इकोनॉमी न केवल एक समाजिक कल्याण योजना है, बल्कि यह वरिष्ठ नागरिकों को एक उपभोक्ता समूह के रूप में पहचानने और उनके लिए विशेष सेवाओं और उत्पादों का बाजार तैयार करने की प्रक्रिया है।

उदाहरण के लिए, वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष अस्पताल, टेलीमेडिसिन सेवाएं, पेंशन योजनाएं, और वरिष्ठ आवासीय योजनाएं सिल्वर इकोनॉमी का हिस्सा हो सकती हैं। इन सेवाओं के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल मिल सकती है, और साथ ही, इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। जापान और जर्मनी जैसे देशों में, जहां वृद्ध जनसंख्या का अनुपात अधिक है, सिल्वर इकोनॉमी के माध्यम से आर्थिक विकास को बल दिया जा रहा है। इन देशों ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष उत्पाद और सेवाएं विकसित की हैं, जो उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के साथ-साथ नए बाजार भी उत्पन्न कर रही हैं।

झारखंड में सिल्वर इकोनॉमी की संभावनाएं

झारखंड जैसे राज्यों में, जहां अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, सिल्वर इकोनॉमी के तहत कई संभावनाएं और अवसर उभर सकते हैं। झारखंड में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ रही है, और उनमें से अधिकांश लोग कृषि या असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत रहे हैं। इनमें से कई वरिष्ठ नागरिकों के पास पेंशन या आर्थिक सुरक्षा का कोई स्रोत नहीं होता, और वे वृद्धावस्था में आर्थिक रूप से असुरक्षित हो जाते हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार: स्वास्थ्य सेवाएं वरिष्ठ नागरिकों के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता हैं। झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक है, विशेषकर जब वरिष्ठ नागरिकों की बात की जाती है। ऐसे में सिल्वर इकोनॉमी के तहत विशेष अस्पताल, वरिष्ठ नागरिकों के लिए मोबाइल हेल्थ वैन, और टेलीमेडिसिन सेवाओं का विस्तार किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘MyHealth’ नामक सेवा एक ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवा प्लेटफार्म है, जो वरिष्ठ नागरिकों को उनकी चिकित्सा आवश्यकताओं के अनुरूप सेवाएं प्रदान करता है। इसी प्रकार, झारखंड में भी टेलीमेडिसिन सेवाओं का विकास किया जा सकता है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को सुलभ और समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान कर सके।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए आवास योजनाएँ: वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष आवास योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं, जहाँ उनकी स्वास्थ्य, सुरक्षा और सामाजिक जरूरतों का ध्यान रखा जाए। झारखंड में इस दिशा में सस्ते और वरिष्ठ-हितैषी आवासीय योजनाओं की जरूरत है, जिसमें सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और मनोरंजन के साधन उपलब्ध हों।

उदाहरण के लिए, पुणे में ‘एथेंस सीनियर सिटिज़न होम्स’ जैसी आवासीय योजनाएँ वरिष्ठ नागरिकों के लिए खासतौर पर बनाई गई हैं। यह मॉडल झारखंड के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अपनाया जा सकता है। राज्य सरकार और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर इस दिशा में पहल कर सकते हैं।

पेंशन और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं: झारखंड में कई वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन या अन्य वित्तीय सेवाओं का लाभ नहीं मिल पाता। राज्य सरकार को इस दिशा में योजनाओं का विस्तार करने की आवश्यकता है, ताकि हर वरिष्ठ नागरिक को पेंशन और बीमा सेवाओं का लाभ मिल सके।

उदाहरण के तौर पर, पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘जय बांग्ला योजना’ की शुरुआत की है, जिसके तहत वरिष्ठ नागरिकों को न्यूनतम आय की गारंटी दी जाती है। इसी तरह की योजनाएं झारखंड में भी लाई जा सकती हैं, जिससे वरिष्ठ नागरिकों को उनकी आर्थिक जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े।

सिल्वर इकोनॉमी की चुनौतियाँ

स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और टेलीमेडिसिन सेवाओं की स्थापना अपर्याप्त है। इन सेवाओं का विस्तार किए बिना, सिल्वर इकोनॉमी के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं देना कठिन होगा।

आर्थिक असमानता: झारखंड में वरिष्ठ नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता एक महत्वपूर्ण चुनौती है। अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों ने अपनी जिंदगी का अधिकांश समय असंगठित क्षेत्रों में काम करते हुए बिताया है, जहाँ उन्हें पर्याप्त आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल पाई। राज्य सरकार को पेंशन योजनाओं का विस्तार करने और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

जागरूकता और साक्षरता की कमी: वरिष्ठ नागरिकों में जागरूकता और डिजिटल साक्षरता की कमी एक और चुनौती है। कई बार वे सरकारी योजनाओं और सेवाओं का लाभ उठाने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी या तकनीकी ज्ञान नहीं होता।

उदाहरण के लिए, डिजिटल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करने में वरिष्ठ नागरिकों को कठिनाई होती है। इस दिशा में जागरूकता अभियान और डिजिटल शिक्षा की पहल की जानी चाहिए, ताकि वे आधुनिक तकनीकों का सही उपयोग कर सकें।

झारखंड में सिल्वर इकोनॉमी के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिकों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, राज्य सरकार को इस दिशा में एक स्पष्ट नीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें स्वास्थ्य, सुरक्षा, आवास और वित्तीय सेवाओं को प्राथमिकता दी जाए। इसके अलावा, निजी क्षेत्र को भी इस दिशा में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे इस वर्ग के लिए रोजगार और सेवाओं का विस्तार हो सके।

सरकार और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष योजनाओं का विकास कर सकते हैं, जिससे वे न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें, बल्कि समाज में भी सक्रिय योगदान दे सकें। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्मार्ट सीनियर सिटीपरियोजना को लागू किया जा रहा है, जिसमें सभी आवश्यक सुविधाएं दी जाती हैं। यह मॉडल झारखंड में भी लागू किया जा सकता है।

झारखंड में सिल्वर इकोनॉमी की संभावनाएं व्यापक हैं, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार, निजी क्षेत्र और समाज के विभिन्न वर्गों को मिलकर काम करना होगा। वरिष्ठ नागरिक समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक सम्मान प्रदान करना हमारी जिम्मेदारी है। यदि झारखंड इस दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो यह न केवल वरिष्ठ नागरिकों के लिए, बल्कि राज्य की समग्र आर्थिक प्रगति के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।