सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
हर साल 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य बेटियों के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बेटियों को समाज में बराबरी का अवसर मिले और उनकी चुनौतियों पर खुलकर चर्चा हो। 2024 में इस दिन की थीम “समान अवसर, समान शिक्षा” रखी गई है, जो लड़कियों को लड़कों के समान अधिकार और अवसर देने का आह्वान करती है।
अगर हम झारखंड और बिहार की बात करें, तो यहां बेटियों की स्थिति देश के कई अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। इन राज्यों में बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित गंभीर समस्याएं हैं। ग्रामीण इलाकों में अभी भी बालिकाओं को स्कूल भेजने में रुचि नहीं दिखाई जाती। बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं आज भी इन राज्यों के कई हिस्सों में प्रचलित हैं, जिससे उनकी शिक्षा और भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
झारखंड के आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा को अब भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। इन जिलों में स्कूलों की खराब स्थिति और शिक्षा के प्रति उपेक्षा के कारण कई लड़कियाँ बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। आदिवासी समुदायों में शिक्षा की कमी से सशक्तिकरण की राह में बड़ी अड़चनें खड़ी हो रही हैं। इसके अलावा, बाल विवाह और कुपोषण जैसी समस्याएँ भी बालिकाओं के विकास को बाधित कर रही हैं।
बिहार में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। यहाँ की बेटियाँ आर्थिक तंगी, सामाजिक बंधनों और कुपोषण जैसी समस्याओं का सामना करती हैं। सुरक्षा के मामले में भी हालात चिंताजनक हैं, विशेषकर स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए, जिन्हें अक्सर यौन उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है। इन कारणों से कई अभिभावक लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।
शिक्षा वह सबसे बड़ा साधन है जिससे बेटियाँ आत्मनिर्भर और सशक्त बन सकती हैं। पढ़ाई उन्हें आत्मविश्वास और समाज में अपनी जगह बनाने की क्षमता देती है। झारखंड और बिहार में सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने की सख्त जरूरत है। जब लड़कियों को शिक्षा का उचित अवसर मिलता है, तो यह उनके जीवन को सुधारने के साथ-साथ समाज और देश की तरक्की में भी मदद करता है।
शिक्षा केवल साक्षरता तक सीमित नहीं होती; यह सोचने, निर्णय लेने और आत्मनिर्भर बनने की क्षमता प्रदान करती है। जब बेटियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती है, तो वे अपने अधिकारों को समझ पाती हैं और जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती हैं। इसके साथ ही, शिक्षित लड़कियाँ न केवल अपनी जिंदगी बेहतर बनाती हैं, बल्कि समाज को भी सकारात्मक दिशा में अग्रसर करती हैं।
स्वास्थ्य के मामले में भी बेटियों की स्थिति चिंता का विषय है। कई जगहों पर उन्हें पोषणयुक्त आहार नहीं मिलता, जिससे वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के अभाव और इस विषय में जागरूकता की कमी के कारण भी किशोरियाँ स्कूल नहीं जा पातीं, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। इस समय उचित देखभाल न मिलने से वे कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती हैं। ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से बालिकाओं का जीवन और भी कठिन हो जाता है।
सुरक्षा के मुद्दे भी उतने ही गंभीर हैं। बाल विवाह और घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं से बेटियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। कानूनों के बावजूद इनका सही से पालन नहीं होने के कारण लड़कियाँ असुरक्षित महसूस करती हैं। स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए यौन उत्पीड़न की घटनाएं एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं, जिसके कारण कई माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से डरते हैं। बेटियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि समाज की भी है, जो जागरूकता और समर्थन के माध्यम से इस दिशा में सुधार ला सकता है।
सरकार द्वारा शुरू की गई ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएँ बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल बालिकाओं की सुरक्षा और शिक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि उन्हें समाज में समान अधिकार दिलाना भी है। हालांकि, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में इन योजनाओं का वास्तविक लाभ पहुँचाने के लिए और अधिक जागरूकता की जरूरत है।
कई गैर-सरकारी संगठन भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन जागरूकता के स्तर को अभी भी बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकारी प्रयासों के बावजूद, बेटियों की स्थिति में सुधार तभी संभव है जब समाज की मानसिकता बदले। परिवार और समुदाय के समर्थन से बेटियों को उनके अधिकार और अवसर मिल सकते हैं, जिससे वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
2024 की थीम “समान अवसर, समान शिक्षा” झारखंड और बिहार जैसे राज्यों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ अभी भी शिक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत काम बाकी है। समाज को यह समझना होगा कि बेटियों की शिक्षा केवल उनका व्यक्तिगत अधिकार नहीं है, बल्कि समाज और देश की तरक्की के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस हमें हर दिन यह याद दिलाता है कि बेटियों की जिम्मेदारी केवल उनकी शिक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन प्रदान करना भी हमारा कर्तव्य है। उनके सशक्तिकरण से न सिर्फ उनके जीवन में बल्कि समाज और देश में भी व्यापक बदलाव आएगा। बेटियों के अधिकार केवल उनके व्यक्तिगत अधिकार नहीं हैं, बल्कि समाज की बेहतरी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें समाज में वही स्थान और सम्मान मिले, जिसके वे सही मायने में हकदार हैं। जब बेटियाँ सशक्त होंगी, तभी समाज भी सशक्त होगा।