सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
आज का युवा रील लाइफ में जी रहा है। सोशल मीडिया के इस दौर में रील्स का क्रेज युवाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। एक असल दुनिया है और एक आभासी दुनिया। युवा इस आभासी दुनिया यानी रील्स के जरिए खुद को अभिव्यक्त करने का माध्यम खोज रहे हैं, लेकिन इसके पीछे छिपे खतरों को नजरअंदाज कर रहे हैं। भारत में टिकटॉक के बैन के बाद से इंस्टाग्राम रील्स ने अपनी जगह बना ली, और इस नई आभासी दुनिया का हिस्सा बनने की होड़ में युवा खुद को खतरे में डाल रहे हैं।
इंस्टाग्राम रील्स 30 सेकंड के शॉर्ट वीडियो के रूप में शुरू हुआ था, जो अब 90 सेकंड तक का हो चुका है। लेकिन इस छोटे से समय में ही यह युवाओं के जीवन में एक बड़ा हिस्सा बन चुका है। रील्स बनाने का यह क्रेज धीरे-धीरे युवाओं की पहचान का हिस्सा बन गया है। अब यह सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर लोकप्रियता हासिल करने का जरिया बन चुका है। “लाइक्स” और “फॉलोअर्स” बढ़ाने की होड़ में युवा खुद को जोखिम में डालते हुए कई बार गंभीर हादसों का शिकार हो रहे हैं।
रील्स बनाने की आड़ में बढ़ता जोखिम
हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जो यह साबित करती हैं कि रील्स का यह क्रेज युवाओं को किस तरह से खतरे में डाल रहा है। लखनऊ में एक युवक ने चलती ट्रेन के सामने खड़े होकर रील बनाने का प्रयास किया और इसकी चपेट में आकर उसकी जान चली गई। दिल्ली में दो युवाओं ने फ्लाईओवर पर खड़े होकर बाइक से स्टंट करते हुए वीडियो बनाया, लेकिन उनका संतुलन बिगड़ गया और गंभीर चोटें आईं।
इन घटनाओं के अलावा रोज़मर्रा में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आ रहे हैं। कभी कोई ऊंची इमारत से स्टंट कर रहा है, तो कभी कोई रेलवे ट्रैक पर चलती ट्रेन के सामने खड़ा होकर वीडियो बना रहा है। सवाल यह है कि क्या यह आभासी लोकप्रियता इतनी महत्वपूर्ण हो गई है कि इसके लिए जान तक दांव पर लगा दी जाए?
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
रील्स के इस क्रेज का असर न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर हर समय परफेक्ट दिखने का दबाव, और ज्यादा फॉलोअर्स पाने की होड़ में युवा मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। जब उन्हें उनकी पोस्ट पर वांछित प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो यह उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है। इससे वे निराश हो जाते हैं और और अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताने लगते हैं, जिससे यह समस्या एक चक्रव्यूह बन जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह समस्या दिन-ब-दिन विकराल होती जा रही है। सोशल मीडिया की इस आभासी दुनिया में परफेक्ट दिखने की होड़ में युवा यह भूल जाते हैं कि असल जीवन में चीज़ें इतनी परफेक्ट नहीं होतीं। हर किसी की जिंदगी में चुनौतियां होती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर एक आभासी दुनिया दिखाई जाती है, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती है। इस आभासी जीवन की तुलना में असल जीवन की वास्तविकताएं युवाओं को निराश कर देती हैं, जिससे वे और भी अधिक सोशल मीडिया पर समय बिताने लगते हैं।
बच्चों और युवाओं में बढ़ता सोशल मीडिया का आकर्षण
सोशल मीडिया का आकर्षण सिर्फ युवाओं तक सीमित नहीं है। अब तो छोटे बच्चों तक में भी रील्स बनाने की आदत घर कर रही है। बच्चे घर में अकेले रहते हैं और मोबाइल पर रील्स बनाते हैं। यह उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। बच्चों का मोबाइल के प्रति बढ़ता आकर्षण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। छोटे बच्चों का झुकाव भी इस आभासी दुनिया की ओर बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि परिवार के बड़े सदस्य भी हर समय मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। बच्चे अपने अभिभावकों की देखादेखी करते हैं और उन्हें भी यह आभासी दुनिया आकर्षित करती है।
समस्या के समाधान की दिशा में कदम
इस समस्या से निपटने के लिए समाज के हर वर्ग को मिलकर काम करना होगा। सबसे पहले, अभिभावकों को यह समझना होगा कि बच्चों को मोबाइल और सोशल मीडिया से दूर रखना अब एक आवश्यकता बन गई है। इसके लिए बच्चों के साथ समय बिताना, उन्हें रचनात्मक गतिविधियों में शामिल करना और उन्हें असल जीवन की महत्ता समझाना जरूरी है। बच्चों को बाहर खेलने, पढ़ाई करने और परिवार के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि वे इस आभासी दुनिया के जाल में न फंसें।
साथ ही, स्कूलों और कॉलेजों में सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों पर जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। शिक्षकों को भी यह जिम्मेदारी उठानी होगी कि वे अपने छात्रों को इस आभासी दुनिया से बचाकर वास्तविक दुनिया की चुनौतियों और अवसरों के प्रति जागरूक करें।
रील्स का सही उपयोग
रील्स का क्रेज अगर सही दिशा में मोड़ा जाए, तो यह युवाओं के लिए एक बड़ा अवसर बन सकता है। रील्स बनाने का यह क्रेज यदि सकारात्मक उद्देश्यों की ओर मोड़ा जाए, तो इससे युवाओं को रचनात्मक तरीके से अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल सकता है। संगीत, नृत्य, फिटनेस, तकनीकी ज्ञान, विज्ञान, हास्य-व्यंग्य, और सेहत से जुड़े मुद्दों पर रील्स बनाकर वे न सिर्फ सोशल मीडिया पर लोकप्रिय हो सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन सकते हैं।
इस दिशा में एक और जरूरी कदम यह है कि सरकार और प्रशासन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट मॉडरेशन की सख्त व्यवस्था करे। ऐसे खतरनाक स्टंट्स और रील्स पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है, ताकि युवा खुद को खतरे में डालने से बच सकें। इसके साथ ही, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और ऐसे खतरनाक कंटेंट को बढ़ावा देने से बचना होगा।
आज का युवा आभासी दुनिया में जी रहा है, जहां लाइक्स और फॉलोअर्स की गिनती उसकी असल पहचान को प्रभावित कर रही है। असल जीवन से ज्यादा, अब यह मायने रखता है कि सोशल मीडिया पर आप कैसे दिखते हैं। लेकिन इस आभासी दुनिया की चमक-धमक के पीछे छिपे खतरों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। आज के युवाओं को यह समझाने की जरूरत है कि असल जीवन का कोई विकल्प नहीं होता। अगर वे अपनी असल पहचान और अस्तित्व को न खोकर, इस आभासी दुनिया में जीने की कोशिश करेंगे, तो यह उन्हें और भी बड़ी मुसीबतों में डाल सकता है।