सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
चुनावी बयानबाजी सही, अभद्र टिप्पणी कर आप थोड़े दिन के लिए लाइमलाइट में तो रह सकते हैं, जनता का विश्वास हासिल नहीं कर सकते। उल्टा, आपका ओछापन, चारित्रिक गिरावट और दबाव में गाली-गलौज पर उतर आना आपकी सहनशीलता के स्तर की खुली किताब होती है। आपकी खोखली ज़ेहनियत दिखलाती है, जहाँ आपकी बड़ी डिग्रियों का राज़ भी खोल देती है।
इरफ़ान अंसारी ऐसे ही एक नाम है जो बदहवास, बेहया, बदमिजाज़ और बौखलाए लोगों की पंक्ति में गिना जाएगा। राजनैतिक तौर या माली तौर पर देखा जाए, तो इरफ़ान अंसारी जैसों की औकात शिबू सोरन, हेमंत सोरेन के सामने क्या होगी? और उन्हीं शिबू सोरेन की बड़ी बहू पर ऐसी ओछी टिप्पणी कर जाना इरफ़ान अंसारी का मादा दिखलाता है। कई बार के उपमुख्यमंत्री/मुख्यमंत्री रहे वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अपनी सगी बड़ी भाभी को “रिजेक्टेड डॉट डॉट” भरी महफ़िल में इरफ़ान का बोल लेना और हेमंत का सुन भी लेना उनके या उनके खानदान के लिए कितना अपमानजनक है, यह तो नहीं पता, किन्तु हेमंत की ये चुप्पी यह भी सिद्ध कर रही है कि इस खेल में कहीं वह भी तो शामिल नहीं?!
क्या आज की राजनीति में मर्यादा और संस्कार की कोई अहमियत रह गई है? इरफान अंसारी की हालिया अभद्र टिप्पणी, जिसमें उन्होंने झारखंड की आदिवासी महिला नेता सीता सोरेन, जो कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी हैं, का अपमान किया, ने इस प्रश्न को और भी प्रासंगिक बना दिया है। अंसारी की इस ओछी टिप्पणी पर हेमंत सोरेन और उनके पिता शिबू सोरेन की चुप्पी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे सत्ता की आस में इतनी अंधेरे में खो गए हैं कि उन्हें अपने परिवार और समाज की मर्यादा की परवाह नहीं रह गई।
जब एक मंत्री इस तरह की अमर्यादित टिप्पणी करता है, तो यह केवल उस व्यक्ति का ही नहीं, बल्कि उस राजनीतिक पार्टी और उनके नेतृत्व का भी अपमान होता है। हेमंत सोरेन, जो खुद आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं, इस घृणित बयान पर मौन रहकर यह सिद्ध कर रहे हैं कि उनके लिए सत्ता से बढ़कर कुछ नहीं है। क्या यह नहीं दिखाता कि उनके लिए परिवार का सम्मान और सामाजिक मूल्यों की कोई कीमत नहीं है?
हेमंत सोरेन का यह मौन यह भी दर्शाता है कि वे सत्ता की आस में अपनी नैतिकता को भुला चुके हैं। जब आपके बड़े भाई की बहू के सम्मान पर सवाल उठता है, तो आपकी चुप्पी इस बात का प्रमाण है कि आप अपने परिवार से अधिक सत्ता को महत्व देते हैं। क्या यह आदिवासी परंपरा और संस्कारों के लिए घातक नहीं है? झारखंड की राजनीति में जब आदिवासी संस्कृति को गर्व से प्रस्तुत किया जाता है, तब इस तरह की घटनाएँ उन मूल्यों को कमजोर कर देती हैं।
यहाँ यह भी देखना जरूरी है कि कैसे हेमंत सोरेन ने मुस्लिम समुदाय के वोटों को साधने के लिए अपनी स्थिति को और भी कमजोर किया है। उन्हें यह भली-भांति समझ है कि अगर वे अगले चुनाव में सफल होना चाहते हैं, तो उन्हें मुस्लिम वोटों का समर्थन चाहिए। लेकिन क्या किसी समुदाय के वोटों के लिए उनकी चुप्पी और असंवेदनशीलता उन्हें विश्वास दिला सकती है? यह यकीनन एक बहुत बड़ा सवाल है।
शिबू सोरेन की चुप्पी भी इस पूरे प्रकरण में बेहद चौंकाने वाली है। वे एक अनुभवी नेता हैं और उनके पास आदिवासी राजनीति का लंबा अनुभव है। क्या वे यह नहीं जानते कि इस तरह की टिप्पणियों का क्या प्रभाव पड़ सकता है? क्या उनका मौन आदिवासी समाज की भावनाओं के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक नहीं है? यह स्थिति निश्चित रूप से आदिवासी समुदाय में एक नकारात्मक संदेश भेजती है, जिससे उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
कांग्रेस पार्टी, जिसे भारतीय राजनीति में अभद्र टिप्पणी करने के लिए जाना जाता है, अब भी अपने इस जुमलेबाजी के हथियार को इस्तेमाल कर रही है। अंसारी का बयान इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे कांग्रेस की राजनीति नैतिकता से परे है। अंसारी ने जिस तरह से सीता सोरेन पर टिप्पणी की, वह केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि पूरे समुदाय का अपमान है। लेकिन इस पर चुप रहकर हेमंत सोरेन और शिबू सोरेन ने यह साबित कर दिया है कि वे अपने लाभ के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
झारखंड की जनता, खासकर आदिवासी समुदाय, इस स्थिति पर सोचने के लिए मजबूर हैं। जब नेता अपनी नैतिकता और संवेदनाओं को छोड़ देते हैं, तो यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि वे सही निर्णय लेंगे। क्या हम ऐसी सरकार चाहते हैं जो केवल सत्ता के लिए किसी भी सीमा तक गिर जाए? क्या हेमंत सोरेन अगली सरकार बनाते हैं तो यह सरकार कितनी निर्दयी होगी? एक ऐसी सरकार जो आदिवासी संवेदनाओं को समझने में असमर्थ है, वह कैसे विकास कर सकेगी?
यदि हेमंत सोरेन अपनी राजनीतिक गतिविधियों में इस तरह की चुप्पी बरकरार रखते हैं, तो इससे केवल उनकी ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड के विकास की संभावनाएँ भी संकट में पड़ जाएंगी। झारखंड में आदिवासियों की भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक है, लेकिन जब आपके नेता ही उस सम्मान को नहीं समझते, तो यह न केवल उनके लिए, बल्कि राज्य के लिए भी विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की आवश्यकता है। अगर हम अपने प्रिय नेताओं से ये अपेक्षाएँ नहीं कर सकते, तो हम किससे कर सकते हैं? इरफान अंसारी के बेतुके और अमर्यादित शब्दों ने यह साबित कर दिया है कि राजनीतिक वर्ग में नैतिकता की कमी है। ऐसे में झारखंड की जनता को सजग रहना होगा और यह समझना होगा कि चुनावी बयानबाजी से अधिक महत्वपूर्ण है एक ऐसी सरकार का चुनाव करना जो उनके मूल्यों और संवेदनाओं को समझे।
इसलिए, हमें चाहिए कि हम अपने नेताओं से उनकी जिम्मेदारियों को निभाने की अपेक्षा करें। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे केवल राजनीतिक लाभ के लिए न हों, बल्कि वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझें। यही समय है जब हम उन नेताओं को पहचानें जो हमारी भावनाओं का सम्मान करते हैं और जो समाज के विकास के लिए ईमानदारी से कार्य करते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि असली विकास तभी संभव है जब हमारी राजनीतिक नेतृत्व नैतिकता और संवेदनशीलता से भरी हो।