सम्पादकीय: पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘
कश्मीर की घाटी एक बार फिर स्थानीय राजनीति और आतंकवादी साजिशों के केंद्र में आ चुकी है। एक ओर केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से कश्मीर में जो विकास और शांति की प्रक्रिया आरंभ हुई है, उससे आम कश्मीरी नागरिक को प्रत्यक्ष लाभ मिला है — पर्यटन में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में विस्तार, और विदेशी निवेश की संभावनाओं ने एक नई उम्मीद को जन्म दिया है। वहीं दूसरी ओर, वे स्थानीय राजनीतिक मठाधीश जो दशकों तक इस क्षेत्र को अपनी जागीर समझकर शासन करते रहे, अब अपने खोए हुए सत्ता-स्वार्थ को पुनः प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास में जुटे हैं।
यह सिद्ध हो चूका है कि इन राजनेताओं का इतिहास भ्रष्टाचार, क्षेत्रीय असमानता और जनता की भावनाओं से खेलने का रहा है। अनुच्छेद 370 के रहते हुए उन्होंने अपनी सत्ता को इस कदर मजबूत कर लिया था कि आम जनता के अधिकार और अवसर सीमित हो गए थे। अब जब स्थिति में सकारात्मक बदलाव हो रहा है, तो उनकी चिंता सिर्फ एक ही है — कैसे फिर से कश्मीर को उसी पुराने दलदल में धकेला जाए; ताकि इनकी नियमित आय और इंसेंटिव पुनः आरम्भ हो जाए।
इसी कड़ी में पाकिस्तान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। वह लंबे समय से “ब्लीड इंडिया विथ थाउज़ेंड्स कट्स” की नीति पर कार्य कर रहा है, और कश्मीर को अस्थिर करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। पाकिस्तान, कश्मीर के इन राजनैतिक प्यादों को समर्थन और संसाधन प्रदान कर उन्हें अपने हितों के लिए इस्तेमाल करता रहा है। इनकी कोशिश यही है कि जैसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की जनता को उन्होंने आतंकवाद की आग में झोंका है, वैसे ही भारतीय कश्मीर के युवाओं को भी कट्टरपंथ और हिंसा की ओर मोड़ा जाए।
हाल ही में पहलगाम में हुए पर्यटकों पर हमले को इसी रणनीति की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। यह न केवल निर्दोष लोगों पर हमला था, बल्कि कश्मीरी अर्थव्यवस्था और उसकी बढ़ती आय के खिलाफ एक सुनियोजित हमला था। क्योंकि आज कश्मीर का युवा शिक्षा, रोज़गार और व्यापार में दिलचस्पी ले रहा है; वह आतंकवाद की बजाय तरक्की की राह पर चलना चाहता है। यही परिवर्तन इन देशविरोधी ताकतों को असहनीय है। जैसे जैसे कश्मीर बढ़ेगा , इन स्थानीय मठाधीशों के आय घटेंगें। साथ ही इसके उलट जैसे जैसे इन मठाधीशों की आय बढ़ेगी , कश्मीरी जनता फिर से इनकी गुलामी को मज़बूर होगी।
अब समय आ गया है कि कश्मीरी जनता इस षड्यंत्र को समझे और उसका विरोध करे। यह केवल सरकार की लड़ाई नहीं है, यह हर उस नागरिक की लड़ाई है जो अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित देखना चाहता है। हमें यह जानना होगा कि राजनीतिक षड्यंत्र और बाहरी हस्तक्षेप केवल अशांति और पिछड़ापन ही लाते हैं।
भारत की केंद्र सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने, निवेश को बढ़ावा देने, और आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि अब पुरानी स्थिति की वापसी संभव नहीं। लेकिन स्थायी समाधान के लिए स्थानीय जनता की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है।
अतः कश्मीर की जनता को चाहिए कि वह अपने विवेक से काम ले, हिंसा और प्रलोभनों से दूर रहे और विकास के इस मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़े। घर के गद्दारों को खोजे और उनका खुद ईलाज करे। यही जवाब होगा उन ताकतों को, जो कश्मीर को एक बार फिर अंधकार में धकेलना चाहती हैं। कश्मीर की असली जीत तब होगी जब हर कश्मीरी नागरिक कहेगा — “हम न विकास से पीछे हटेंगे, न आतंक से डरेंगे।”