– Purnendu Sinha Pushpesh
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हालिया प्रदर्शन पर आत्ममंथन करते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि झारखण्ड में भाजपा संगठन अपनी जड़ों से कटता जा रहा है। प्रदेश प्रभारी डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी और कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. रविंद्र राय ने अपनी समीक्षा बैठक के दौरान पार्टी के लिए “मील का पत्थर” जैसी घोषणाएँ कीं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे भिन्न है।
डॉ. राय तो बता रहे हैं कि झारखंड की जनता में भारतीय जनता पार्टी की विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई है। पहले से पार्टी को 9 लाख अधिक वोट मिले हैं। लोगों के बीच में भारतीय जनता पार्टी के मुद्दे और विषय को स्वीकृति भी मिली लेकिन वोटो के ध्रुवीकरण के कारण इसमें सांप्रदायिकता का भाव और जातीयता का उभार पैदा किया गया कुछ समूहवाद को और झारखंड को विभाजित करने का काम किया गया। इसकी वजह से जो परिणाम की उम्मीद की थी, वह नहीं आई। हालांकि, इसमें भाजपा के संगठन और उम्मीदवार के स्तर पर कमी और आरोप प्रत्यारोप की बात कहीं से नहीं आई। हर व्यक्ति ने स्वीकार किया कि समाज में भाजपा बातों को सुना और सराहा गया। लेकिन अगर कही हुई ये बाते ही यथार्थ हैं तो यथार्थ चरितार्थ होता हुआ पर्याप्त से इतना ज्यादा कम कम दिखा; प्रश्न तो उठता ही है।
एंटी इनकम्बेंसी (कारण चाहे उक्त विधायकों की असक्षमता रही हो या उनका अहंकार) ने कई भाजपा विधायकों को जड़ से उखाड़ दिया इस चुनाव में। तो क्या सही उम्मीदवारों में सीट बंटवारा हो पाया था? जब पता था कि जयराम महतो की वर्तमान पकड़ कैसी है, तो किस अहंकार में उसे नहीं साधा गया और कुर्मी-कुम्हार वोटो को सामने से जाने दिया गया? चम्पाई सोरेन परिवार , लोबिन हेम्ब्रम आदि जैसे आदिवासी नेताओं को लाकर पका-पकाया खाने की कोशिश में हज़ारो-लाखों ‘अपने ‘ को नाराज़ कर दिया गया….. बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। सारतः बावजूद इन लापरवाहियों के झारखण्ड भाजपा द्वारा फिर से केंद्रीय भाजपा को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है। ऐसी राजनीति से दल में सत्ता प्राप्त हो जाते होंगे ; जनता सत्ता नहीं सौंपती।
जब तक झारखण्ड भाजपा के कर्ता-धर्ता पीठाधीशगण अपनी आत्ममुग्धता से बाहर नहीं आएंगे भाजपा का झारखण्ड में पुनरोदय संभव नही है। सर्वप्रथम तो अपनी छावनी के चापलूसों और अतिप्रियों से विच्छेद करना होगा। आदिवासी सामूह में गहरी पैठ जगानी होगी उनमे अपने प्रति विश्वास जगाना होगा। और जिनके ऐसा करने में सक्षमता समझ में आती है , वैसे समर्पितों के साथ एक टीम बनानी होगी, एक नया प्रशासन तैयार करना होगी – निर्मोही बन कर।
आत्ममुग्धता और चापलूसी की राजनीति
भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को सबसे पहले आत्ममुग्धता और चापलूसी से बाहर निकलने की आवश्यकता है। शहरी क्षेत्रों और नौकरीपेशा वर्गों के भरोसे चुनाव जीतने का भ्रम पालने के बजाय, पार्टी को अपने आधार को विस्तार देना होगा। झारखंड का बड़ा हिस्सा ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में है, लेकिन वहाँ भाजपा की पकड़ कमजोर होती जा रही है।
दरअसल झारखंड भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी जमीनी उपस्थिति की कमी और आदिवासी समुदायों के साथ कमजोर संवाद है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और सच्ची रिपोर्ट्स के लिए रास्ता साफ़ करना होगा। अपने चारों ओर चापलूस और अवसरवादी व्यक्तियों का जमावड़ा लगाकर एक प्रभावी संगठन का निर्माण नहीं हो सकता।
आदिवासी समुदाय और सामाजिक संतुलन
झारखंड जैसे राज्य में, जहाँ आदिवासी आबादी का बड़ा हिस्सा है, भाजपा को एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने होंगे। आदिवासी समुदाय के हितों की अनदेखी पार्टी की हार का मुख्य कारण रही है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने सफलतापूर्वक आदिवासी भावनाओं को अपने पक्ष में मोड़ा, जबकि भाजपा के प्रयास केवल बयानबाजी तक सीमित रह गए।
आदिवासी समुदाय के साथ भाजपा का संवाद अभी भी सतही है। पार्टी को उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं को समझने के लिए गहराई में जाना होगा। केवल नारों और वादों से अब काम नहीं चलेगा।
रणनीति में बदलाव की आवश्यकता
भाजपा को अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव लाने की आवश्यकता है। प्रदेश नेतृत्व द्वारा “अंगद की तरह पैर जमाने” जैसे बयान सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन इन बयानों के लिए ठोस रणनीतिक क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। पार्टी को सदस्यता अभियान के साथ-साथ स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करना चाहिए। जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण से बचते हुए समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना होगा। पार्टी को झारखंड में युवा और महिला वर्ग के लिए ठोस योजनाओं और नीतियों पर ध्यान देना चाहिए; आदि आदि।
भविष्य की राह
डॉ. वाजपेयी और अन्य नेताओं ने पार्टी को “सजग लोकतांत्रिक प्रहरी” के रूप में प्रस्तुत करने की बात कही है। यह अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए सतत संघर्ष और ईमानदारी आवश्यक है। भाजपा को न केवल विपक्ष की भूमिका निभानी है, बल्कि झारखंड की जनता के बीच अपना विश्वास दोबारा अर्जित करना होगा।
भाजपा के शुभचिंतक यह मानते हैं कि पार्टी में अब भी संभावनाएँ हैं, लेकिन वर्तमान नेतृत्व को अपने अहंकार और चाटुकारिता के घेरे से बाहर आना होगा। झारखंड में भाजपा का पुनरोदय तभी संभव होगा, जब यह पार्टी जमीनी हकीकत से जुड़कर सही मायनों में “जनता की पार्टी” बनेगी।