हे गोविन्द हे गोपाल राखु लाज मोरी……ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

द्रौपदी ने जब आर्त हो कर प्रभु को पुकारा तो प्रभु ने उसकी लाज रखी। प्रस्तुत है द्रौपदी चीरहरण पर मेरी ये रचना :—-

हे गोविन्द हे गोपाल राखु लाज मोरी ।
सभा बीच चीर खिंच्यो दुष्ट दुराचारी ,
भीष्म द्रोण कृपाचार्य देखत निहारी ।
हे गोविन्द हे गोपाल राखु………..
कुलश्रेष्ठ धृतराष्ट्र चुपचाप मौन साध्यो ,
पाँच पती बैठि रह्यो देखत मनमारी ।
हे गोविन्द हे गोपाल राखु………..
आर्त बचन द्रौपदी की सुनी जब मुरारी ,
धाय दौड़ मधुसूदन दिन्हिं बसन डारी ।
हे गोविन्द हे गोपाल राखु………..
चीर खैंचि दुःशासन बैठि थाक हारी ,
द्रौपदी की लाज राखि माधव मुरारी ।
हे गोविन्द हे गोपाल राखु………..

 

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र