अब तो राखो लाज मुरारी…..ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

द्रौपदी चीरहरण पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–

मैं दुखिया शरन तुम्हारी,
अब तो राखो लाज मुरारी ।
बीच सभा में दुष्ट दुशासन,
खींचत चीर हमारी ।
भीष्म द्रोण गुरु कृपाचार्य सब,
देखत नैन उघारी ।
अब तो राखो लाज हमारी ।
मैं दुखिया शरन तुम्हारी…….
नृप धृतराष्ट्र मौन हैं साधे,
बैठे पाँच पती मनमारी ।
तुम बिन और नहीं कोइ दूजा,
गोबर्धन गिरधारी ।
अब तो राखो लाज हमारी ।
मैं दुखिया शरन तुम्हारी…….
आरत बचन सुनी जब प्रभु ने,
दिन्हिं बसन पट डारी ।
खैंचत चीर दुशासन हारा,
राखी लाज मुरारी ।
अब तो राखो लाज हमारी ।
मैं दुखिया शरन तुम्हारी…….

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रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र