दुख कौन हरे बिन तेरे……ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है शरणागत भजन के रूप में मेरी ये रचना:—–

दुख कौन हरे बिन तेरे,
रघुबीर कृपालू मेरे ।
जब से संसार में आया,
ममता में रहा भुलाया,
मद काम क्रोध सब घेरे ।
रघुबर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे…….
हरि भजन न मो को भाया,
नहिं प्रेम चरन रघुराया,
अंत: में छाए अंधेरे ।
रघुबीर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे…….
तन धोया मन नहिं धोया,
यह जीवन व्यर्थ बिगोया,
छूटे न भ्रमण के फेरे ।
रघुबीर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे…….
प्रभु अंत समय आया जब,
तेरि याद प्रभू आई तब,
‘ब्रह्मेश्वर’ शरन है तेरे ।
रघुबीर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे…….

भ्रमण के फेरे = जन्म मृत्यु का चक्र

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र