चली जा रही है ये जीवन कि नैया……..ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है मेरी ये रचना शरणागत भजन के रूप में :—

चली जा रही है ये जीवन कि नैया ।
न पतवार प्रभु जी न कोई खेवैया ।।
ये जीवन कि नैया ।
चली जा रही है ये जीवन…….
चलाऊँ मैं कैसे समझ में न आए,
क्या मैं करूँ जो भटकने न पाए ।
तुम बिन न कोई प्रभु जी पार लगैया ।
ये जीवन कि नैया ।
चली जा रही है ये जीवन…….
ये संसार सागर खड़ा मूँह बाए,
डर है कहीं नाथ भवँर न डुबाए ।
पार लगादो प्रभु जी जगत के रचैया ।
ये जीवन कि नैया ।
चली जा रही है ये जीवन…….
कर्मों कि पतवार तुम हीं खेवनहार,
चाहे डुबा दो या फिर करदो भवँर पार ।
कर्मानुसार खेवत हो तु नैया ।
जगत के रचैया ।
चली जा रही है ये जीवन…….

 

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र