सुखवा सब कोई बाँटे…….ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

सुख में तो सभी साथ निभाते हैं लेकिन जब बुरे दिन आते हैं तो सभी साथ छोड़ जाते हैं । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——-

सुखवा सब कोई बाँटे ,
दुख के साथी कोई ना ।
हीत मित्र भाई और बंधू ,
सब मतलब के साथी ।
जब तक चेट में दाम रहल ,
सब सटल रहलें दिन राती ।
दुर्दिन जब आईल हे भैया ,
सब जन भाग परैलें ।
सुखवा सब कोई बाँटे ,
दुख के साथी———–
पेट काटि के पुत्र पढ़वनी ,
सब बिधि जोग्य बनवनी ।
होइहैं एक दिन मोर सहारा ,
मन में आस जगवनी ।
आइल बुढ़ापा जब हे भैया ,
पुत्र छोड़ि के गइलें ।
सुखवा सब कोई बाँटे ,
दुख के साथी———–
छोड़ो ममता मोह रे भाई ,
केहु न साथ निभाई ।
दुख में हीं पहिचानल जालें ,
हित मित बेटा भाई ।
कलियुग के ई रीति ह भैया ,
स्वारथ लागि मिताई ।
सुखवा सब कोई बाँटे ,
दुख के साथी———–

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र