कहाँ जा रहा है ? …..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

कहाँ जा रहा है ?—–

विरह में बिलखत कौशिल माई ।
कोइ मोरे लाल दिखाई ।
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
न मंजिल न कोई ठिकाना न घर ।
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
जीवन में कठिनाइयाँ आतीं रहेगीं,
व्याकुलता मन की बढ़ातीं रहेगीं,
भाग कर जाएगा तू कहाँ और किधर ?
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
कैसी बढ़तीं सदा देखो नदियाँ चलीं,
चीर सीने को पर्वत का बढ़तीं चलीं,
तुम भी बढ़ते चलो विघ्न को दूर कर ।
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ?
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रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र