पाकिस्तान, अब तो अपनी ब्लैक मनी को काम में ले ही लो!

-पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘   

एक ख्याल आया और मुस्कान छूट गई। फिर सोचा — हँसी में टाल देने जैसी भी नहीं है यह बात। तर्क तो है। और जब तर्क दोनों के फायदे का हो, खासकर पाकिस्तान के ज्यादा फायदे का, तो सोचना तो बनता है, बताना तो और भी जरूरी हो जाता है।

देखिए जनाब, आज का पाकिस्तान एक सहमा हुआ, डरा हुआ मुल्क है। हर रोज़ उसकी साँस अटकती है, हर घंटे उसके दिल में हलचल होती है। भारतीय हमले का डर उसे पल-पल तिल-तिल कर मार रहा है। इसकी पुष्टि खुद पाकिस्तानी मीडिया भी कर रहा है। सुना है कि पाकिस्तानी बड़े-बड़े अमीर, फौजी अफसर, नेता और आला अधिकारी अपने कुनबे समेत विदेश भागने की तैयारी कर चुके हैं। सबको मालूम है, भारत जब भी हमला करेगा, चाहे सुबह करे या रात को, थोक में करेगा और सीधा दिल पर करेगा — यानी आतंकियों के दिल में।

अब पाकिस्तान के पास एक सुनहरा अवसर है — अपनी वर्षों से पाली-पोसी गई “ब्लैक मनी” यानी आतंकी ब्रिगेड को कुछ असली काम में लगाने का। पाकिस्तान ने इन्हें वैसे ही ट्रेनिंग दी है जैसे अपने फौजियों को। प्यार से पाल-पोसकर बड़ा किया है, उनकी खातिर दुनिया भर से कर्ज उठाया है। आखिरकार यह पल किसलिए नहीं था?

सोचिए, अगर भारत हमला करे तो सबसे आगे अपने ये आतंकी लगा दो। सभी फ्रंटलाइन्स पर, जहाँ जहाँ से हमले की आशंका हो। फौजियों को पीछे रहने दो, महफूज़ रखो। आतंकी ढाल बनेंगे, हमलों को झेलेंगे, और हो सकता है कि भारत का मकसद पहले ही हमले में पूरा हो जाए — आतंकियों का नाश!

भारत को दया भी आ सकती है। वह सोच सकता है, “चलो, अब इतने में ही रहो, अब पाकिस्तानी फौज को मत मरो। नए पाकिस्तान को भी जीने का मौका मिलना चाहिए।”

भारत जानता है कि भले ही पीओके भारत में आ जाए, बलूचिस्तान और खैबर पख्तून आज़ाद हो जाएं, फिर भी बचे-खुचे पाकिस्तान को एक अदद फौज तो चाहिए होगी, ताकि वह अपनी इज्जत बचा सके, और दुनिया के सामने खुद को भिखारी के बजाय एक तरक्कीपसंद मुल्क साबित कर सके।

तो पाकिस्तान, दिल पर हाथ रखकर सोचो — आखिर तुमने इन आतंकियों को इतने बरसों तक पाल-पोसकर क्यों रखा है? दुनिया भर से कर्ज लेकर, खुद को बदनाम कराकर? क्या अब भी वे काम नहीं आएंगे?

ये आतंकी तुम्हारी “ब्लैक मनी” हैं। जैसे आम आदमी वाइट मनी को दुनिया को दिखाता है और ब्लैक मनी से अपनी असली जरूरतें पूरी करता है, वैसे ही तुम भी करो। अपनी वाइट मनी — यानी फौजी — को बचाकर रखो। उन्हें बाइक पर बिठाकर, झंडा फहराकर, दुनिया को दिखाओ। और अपनी ब्लैक मनी — यानी आतंकियों — को मौके पर खर्च कर दो, वो भी चुपचाप, पूरी शिद्दत से।

वैसे भी, पाकिस्तानी सत्ता को यह बात कहने की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें तो अपने स्वार्थ का गणित खुद बखूबी आता है। मैं कहूँ या न कहूँ, वे यही करेंगे — क्योंकि जब दांव पर खुद की जान और गद्दी हो, तो अक्ल अपने आप लौट आती है।

तो पाकिस्तान, अब समय आ गया है। तुम्हारी पुरानी निवेश नीति — आतंकियों में निवेश — का रिटर्न लेने का। उन्हें फ्रंटलाइन पर उतारो, फौज को पीछे हटाओ, और खुद को एक बार फिर से, दुनिया के सामने, एक नई इबारत लिखने का मौका दो।

कहते हैं कि विपत्ति में ही सच्ची काबिलियत निखरती है। पाकिस्तान, तुम्हारी काबिलियत अब परखने का वक़्त आ गया है। दुनिया देख रही है — ब्लैक मनी कैसे काम आती है। पाकिस्तान को अपनी ब्लैक मनी को खर्च करना आता भी है या नहीं।

वैसे इसे आप महज़ एक व्यंग्य समझे तो इसमें मैं क्या कह सकता हूँ !