गजल —-
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें ।
फासले ये जिन्दगी के, मिल के निपटाते चलें ।।
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें ।
दूरियाँ जो बन गईं हैं, गफ्लतों कि आँधी में ।
क्यूँ न उसको आज हम, भूल पाटते चलें ।।
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें ।
जिन्दगी का क्या भरोसा, कल रहे या ना रहे ।
मन कि कलुषित भावना को, आज विसराते चलें ।।
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें ।
भाग्य से अवसर मिला है, चूकने न पाएँ हम ।
जिन्दगी के गम खुशी को, मिल के बाँटते चलें ।।
दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र