यह तन माटी में मिल जाना…….ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

पंचतत्व से बना मनुष्य का यह शरीर एक दिन मिट्टी में हीं मिल जाना है। धन दौलत सब धरा का धरा हीं रह जाएगा फिर तेरा मेरा क्या करना, सब लोग श्मशान तक के साथी हैं फिर कोई साथ नहीं निभाएगा। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

यह तन माटी में मिल जाना ।
अंत समय जब आए बन्दे ,
काम न आए माल खजाना ।
खाली हाथ तु आया बन्दे ,
खाली हाथ ही जाना ।
यह तन माटी में………
तेरा मेरा छोड़ रे बन्दे ,
ना कोइ अपना ना बेगाना ।
सब बन्दे शमशान के साथी ,
फिर नहिं साथ निभाना ।
यह तन माटी में………
एक भरोसा राम नाम का ,
ता में बन्दे नेह लगाना ।
भवसागर से पार करेगा ,
यहीं है एक ठिकाना ।
यह तन माटी में………

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र