राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी…..ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

हे प्रभु मैने तो अपने आप को तुम्हारे हीं भरोसे छोड़ दिया है अब चाहे शरण में राखो या त्याग दो, अब तो मेरा कोई दूसरा भरोसा नहीं है। प्रस्तुत है मेरी रचना शरणागत भजन के रूप में:—-

राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी,
अब तो राखो शरन में या त्यागो हरी ।
मैं तो कामी हूँ क्रोधी और लोभी हरी,
मैं तो पापी हूँ विषयी और भोगी हरी,
अब हरो पाप चाहे हरो ना हरी ।
अब तो राखो शरन में या त्यागो हरी ।
राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी…….
कितने पापी शरन तेरि आए हरी,
तिन्हके अपराध पल में भुलाए हरी,
यह अधम मन को भाए न भाए हरी ।
अब तो राखो शरन में या त्यागो हरी ।
राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी…….
मेरि नौका पड़ी है भवँर में हरी,
नाहिं पतवार नाहीं खेवैया हरी,
अब तो पार करो या डूबा दो हरी ।
अब तो राखो शरन में या त्यागो हरी ।
राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी…….
तुमहिं सारे जगत को बनाते हरी,
पालते पोषते और मिटाते हरी,
राखो या फिर हमें तुम मिटा दो हरी ।
अब तो राखो शरन में या त्यागो हरी ।
राम तेरे भरोसे कटे जिन्दगी…….

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र