एक भक्त कहता है कि हे प्रभु जिस चरण से गंगा जी निकली, जिस चरण के स्पर्श से मुनि पत्नी अहिल्या तरि गई,जिस चरण को केवट ने धोया, जिन चरणों में गिद्ध जटायू ने प्राण त्यागा, जिन चरणों की सेवा देवता मनुष्य मुनि लोग करते हैं, हे प्रभु उन्हीं चरणों में मेरी भी लगन लग गई है, हे प्रभु मेरा भी उद्धार करो । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना :—–
मोहे लागि रे लगन हरि चरनन की ।
जेहि चरनन से सुरसरि निकली ,
जेहि चरनन से मुनि पत्नि तरली ,
मोहे लागि रे लगन ओहि चरनन की ।
मोहे लागि रे लगन हरि…………
जेहि चरनन के केवँट धोवलें ,
जेहि चरनन में गिद्ध प्रान त्यगलें ,
मोहे लागि रे लगन ओहि चरनन की ।
मोहे लागि रे लगन हरि…………
जेहि चरनन के सुर नर सेवलें ,
जेहि चरनन के मुनि जन ध्यवलें ,
मोहे लागि रे लगन ओहि चरनन की ।
मोहे लागि रे लगन हरि……….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र