माता सती ने शरीर त्यागने के पश्चात् राजा हिमाचल के घर उनकी पत्नी महारानी मैना के गर्भ से पुत्री रूप में अवतार लिया और माता पिता ने इनका नाम पार्वती रखा। पार्वती जी का जन्म का समाचार सुन कर नारद जी दर्शन के लोभ से राजा हिमाचल के घर पहुँचे। राजा ने मुनि जी का बहुत स्वागत-सत्कार किया और पुत्री पार्वती को ला कर मुनि जी के चरणों पर रख दिया और पुत्री का भूत भविष्य पूछा। नारद जी ने कहा कि हे राजन तुम्हारी पुत्री सभी सुन्दर लक्षणों से युक्त, जगत में पूजनीय और पति की अत्यंत प्यारी होगी। इसके पतिब्रत धर्म का जगत की स्त्रियाँ अनुसरण करेगीं । माता-पिता इससे यश पाएंगे। अब पुत्री के जो दो चार अवगुण हैं वह भी सुन लो। इसे माता पिता विहीन, औघड़, अनिकेत, अमंगल वेष धारण करने वाला पति मिलेगा। यह सुनकर पार्वती जी के माता-पिता बहुत दुखी हुए तब नारद जी ने उन्हें समझाया और कहा कि ये सभी अवगुण शिव जी में हैं। तुम्हारी पुत्री का विवाह जब शिव जी से हो जाएगा तब शिव जी के ये सभी अवगुण गुण में बदल जाएगें। नारद जी ने पार्वती जी के पूर्व जन्म की कथा सुना कर कहा कि ये जन्म जन्मान्तर से शिव जी की अर्द्धांगिनी हैं इसलिए हे राजन विषाद त्याग कर पार्वती को शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने हेतु तपस्या करने के लिए वन में भेजो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
हर्षित भई मैना रानी ,
प्रगट भई गिरिजा भवानी ।
नारद बाबा आके गुण दोष बतवलें ,
कहलें पुरातन कहानी ।
प्रगट भई गिरिजा भवानी ।
हर्षित भई मैना रानी………
मिलिहें पती इनका अशुभ वेषधारी ,
औघड़ अमंगल अकामी ।
प्रगट भई गिरिजा भवानी ।
पिछला जनम में सती नाम इनिके ,
शिव के रही प्यारी रानी ।
प्रगट भई गिरिजा भवानी ।
हर्षित भई मैना रानी………
अबकी जनम में तोहार पुत्री भइली ,
हइ आदिशक्ति भवानी ।
प्रगट भइ गिरजा भवानी ।
हर्षित भई मैना रानी………
शिव जी खातिर ई कठिन तप करिहें ,
शिव जी से प्रीत पुरानी ।
प्रगट भइ गिरिजा भवानी ।
हर्षित भई मैना रानी………
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रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र