शोभत है शिव के बरात……..ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

शिव जी के गणों ने शिव जी का अद्भुत श्रृंगार किया। सांप का मौर बनाया, सांप का हीं गले में माला, सांप का हीं कुण्डल और सांप का हीं भुजदंड बनाया। बदन में श्मशान का भस्म, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा शोभा पा रहा है। कटि में मृगचर्म और जटा में गंगा जी शोभा पा रहीं हैं। हाथ में त्रीशूल और डमरू धारण कर शिव जी बसहा बैल पर सवार होकर भूत बैतालों के साथ बारात लेकर चले। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—

शोभत है शिव के बरात हो शिव अइलैं दुलहवा ।
साँप के मौर साँपहिं गले माला,
साँपे के कुंडल भुजबन्द हो शिव अइलैं दुलहवा ।
शोभत है शिव के बरात……..
शमसान भस्म बदन पर शोभे,
शोभत है कटि मृगछाल हो शिव अइलैं दुलहवा ।
शोभत है शिव के बरात………
चन्द्र ललाट तिलक शुभ शोभे,
जटवा में गंगा की धार हो शिव अइलैं दुलहवा ।
शोभत है शिव के बरात………
हाथ त्रीशूल डमरू शिव शोभे,
बसहा पर होके सवार हो शिव अइलैं दुलहवा ।
शोभत है शिव के बरात………
नन्दी और भृंगी संगहीं संग नाचत,
नाचत हैं भुत बैताल हो शिव अइलैं दुलहवा ।
शोभत है शिव के बरात……..

रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र