कलियुग के प्रथम चरण में आर्यावर्त की पावन धरा पर ऋषि दुर्बुद्धि बड़े प्रसिद्द हुए . जन्म से ही वे अल्पतम समय और योग्यता के ही बहुत धनवान होने की इच्छा रखने लगे . उनका हठ था कि वे अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए किसी प्रकार प्रसिद्द पत्रकार बन जाएँ . इसके उन्होंने पत्रकारिता के विभागीय देवता श्रेणी के नारद जी को प्रसन्न करने के लिए कलियुगी तप करने लगे . बहुत वर्षों के तप से अन्ततः महर्षि नारद प्रसन्न हुए और प्रकट हुए . ऋषि दुर्बुद्धि ने उनसे अपने तप का उद्देश्य बताया . ऋषि नारद बोले – सबसे पहले तुम्हें भूले सच की कथा सुनाता हूँ . ध्यानपूर्वक इस कथा के श्रवण और धारण से हे वत्स , तुम्हारे उद्देश्य की पूर्ति होगी .
नारद जी ने कहा – आज सच के साथ खड़ा होना भी पहले के झूठ के साथ रहने जैसा है . जो सच के साथ खड़े होने की घोषणा करते हैं , वे झूठ को अपना चुके हैं , उसके हो चुके हैं . सत्य उनकी ऐसी प्रेमिका है , जिसके सौंदर्य का वर्णन वे करते अवश्य हैं , लेकिन वे उसके तुरंत बाद झूठ के केशुओं और आँचल में की छाया में छिप कर आनंद विभोर हो जाते हैं ! भूला हुआ सच पीड़ा देता है ! स्मारित झूठ आनंद और ऐश्वर्य !
अब कथा सुनो .एक बार राजन दुर्जन बड़े भ्रम में पड़ गए . राज दरबार में एक ओर राज्य का एक प्रसिद्द व्यापारी न्याय के लिए खड़ा था . तो दूसरी ओर महामंत्री पर रिश्वत लेकर काम न करने का वह आरोप लगा रहा था . महामंत्री राजन के हर व्यसन और गुप्त रहस्य को जानने वाला राजन का मित्र था . राजन ने न्याय के लिए एक माह का समय लिया . बीस दिन बीत गए , राजन को समस्या का समाधन नहीं मिल रहा था . वह असमंजस में था कि महामंत्री के भूले हुए सच का साथ दे कि व्यापारी के सत्य का . दोनों ओर सत्य , दोनों ओर पीड़ा . राजन असमंजस की स्थिति में अपनी पीड़ा के समाधान हेतु आधुनिक आध्यात्मवाद के प्रणेता महामात्य की शरण में पँहुचा . महामात्य राजन की पीड़ा से अवगत थे , लेकिन बिना माँगे राजन को परामर्श देने की शक्ति नहीं रखते थे . लेकिन जब राजन अपनी इस पीड़ा के समाधान शरणागत हुआ तो महामात्य ने कहा – हे राजन ! महामंत्री के सत्य अथवा सभी को समय के साथ भूलने में भलाई है . प्रसिद्द व्यापारी अभी नादान है , जिसने रिश्वत के सत्य को उजागर किया . हे राजन ! तुम्हें अविलम्ब महामंत्री को कारागार में डाल देना चाहिए . क्योंकि उसके रिश्वत लेने की बात सार्वजनिक हो गयी है . उसके द्वारा ली गयी रिश्वत की कुल धनराशि को तुम जप्त कर उसका स्वयं उपभोग करो , क्योंकि यह धनराशि तुम्हारे बलबूते पर महामंत्री ने उगाही है , इसलिए उस पर तुम्हारा अधिकार बनता है . प्रसिद्द व्यापारी को महामंत्री बना दो और जनता से रिश्वत उसी के माध्यम से दुगुनी लेना प्रारम्भ करो . व्यापारी सत्यवाद का सच भूल जाएगा . राजन यह वचन सुनकर लौट आए और अपना निर्णय इसी के अनुरूप सुना दिया .
नारद जी बोले – हे ऋषि दुर्बुद्धि , जिसने सत्य को जितनी शीघ्रता से सफलतापूर्वक भुलाया , वह उतना बड़ा पत्रकार होकर बहुत बड़ी धन – सम्पदा को प्राप्त हुआ .
इतना कहकर ऋषि नारद अंतर्ध्यान हो गए . ऋषि दुर्बुद्धि राजसत्ता की छत्रछाया में बड़े भारी पत्रकार हुए .
यह सपना मैं कहहुँ विचारि
होइहें सत्य गए दिन चारि !