सरस्वती वंदना………… प्रशान्त करण

सुबह ठीक आठ बजे रामलाल के उस नए युवा और अविवाहित किरायेदार, जो एक माह पूर्व ही आया था, के घर का द्वार पिछले सात दिनों से खुलता और उच्च स्वर में विलम्बित ताल में सरस्वती वंदना सुनाई देती –

माँ शारदे! चरणों में, मुझको मिले अवलंबन

माँ भारती! ज्ञान सागर,में है मेरा समर्पण

हर पगरज तुम्हारे, विमूढ़ता आवर्जन

मन में रहे समाया, तेरे प्रति यह निरमण

हर आर्तनाद में हो, विणा के स्वर का मिश्रण

हर आह्लाद में हमारे, श्वेताभ सा हो तन -मन

मेरी लेखनी में भर दो, नव नवसत का दर्शन

मानस में सत्यता का, कल्याण का आकर्षण

क्रोध, लोभ, तम का, होता रहे आकुण्ठन

वर दो कि सर्वदा मैं, करूँ तेरा चरण वंदन

    इस वंदना के गायन के बाद वह युवक घर खुला छोड़ बाहर निकलकर टहलता. घर के समक्ष सड़क के ठीक सामने एक संगीत विद्यालय था और बाहर एक अधेड़ महिला बेंच पर बैठी रहती. युवक उनके सामने से सरस्वती वंदना की प्रथम पंक्ति के – माँ शारदे गाता हुआ अनेक बार आता जाता. तबतक एक सौंदर्यवती युवती संगीत विद्यालय से निकलकर आती और चलो माँ कहती. फिर माँ बेटी दोनों चले जाते. युवक का गायन बंद हो जाता और वह अपने दैनिक कार्यक्रम में लग जाता. युवक एक बैंक अधिकारी था. एक महीने की साधना के बाद एक दिन उस महिला ने उसे टोक दिया. बोली – बेटा! तुम माता सरस्वती के उपासक हो. ब्राह्मण हो क्या ? लड़के के कहा – जी, सरयूपायी ब्राह्मण हूँ. फिर महिला ने पूछा – बड़े अच्छे संस्कार हैं तुम्हारे. क्या करते हो ? युवक ने विनम्रता से कहा – जी, बैंक में ऋण अधिकारी हूँ. महिला ने फिर पूछा – कहाँ के हो ? अकेले रहते हो, पत्नी साथ नहीं रहती ? वह युवक बड़ी विनम्रता से बोला – माता जी, जबलपुर का हूँ, अविवाहित हूँ. और आप ? महिला बोली – हमलोग वैश्य हैं. अगली मोड़ से दाहिने तीसरा घर है. कभी आओ. तबतक वह युवती बाहर आयी और फिर अचानक वार्तालाप का संबंध – विच्छेदकर दोनों चले गए. अगले दिन से युवक का सरस्वती वंदना का कार्यक्रम बंद हो गया. वह अब अक्सर उस महिला के घर जाने लगा. युवती उससे नजर मिलाती फिर अंदर चली जाती. उसे ज्ञात हुआ कि युवती के पिता का निधन एक वर्ष पूर्व बीमारी से हुआ. आय का कोई साधन नहीं है. युवक धीरे – धीरे उनकी आर्थिक मदद करता. युवती अब थोड़ा बात करती फिर घर के अंदर चली जाती. युवक दो साल लगा रहा. एक दिन अचानक युवती इस युवक की उपस्थिति में घर रिक्शे से लौटी. साथ में एक युवक भी था. लड़की की मांग में सिंदूर भरा था. उसने आते ही युवक के पाँव छुए और कहा – भैया! हम दोनों को आशीर्वाद दीजिये. युवक तुरंत लौट आया. लौटते हुए उसने हिसाब लगाया – मुफ्त में मेरे चार लाख पैंतीस हजार सात सौ रुपये डूब गए.

      उसके अगले दिन से वह उच्च स्वर और विलम्बित ताल में गाने लगा है

वर दे! विणावादिनी वर दे!……