रोता किसान ………… – डॉ प्रशान्त करण

किसान की कई प्रजातियाँ हमारे राष्ट्र में बहुतायत से पायी जाती है. इनमें से सर्वाधिक संख्या उनकी है, जिन्हें वास्तविक रूप में किसानी से कोई संबंध नहीं होता. वे छोटे से बड़े शहरों तक में रहकर किसी व्यापार अथवा अन्य किसी धंधे में सम्मिलित होते हैं और नाना प्रकार के लाभ के लिए स्वयं को गौरवपूर्ण प्रकार से किसान कहलवाते हैं. दूसरी प्रजाति नेतागिरी वाली है, इन्हें भी सच्चे अर्थ में किसानी से कोई संबंध होता ही नहीं. सेवा ने नाम पर, सेवा की आड़ में ऐन केन प्रकारेण सेवा की मलाई खाना और खाते रहना इनकी लत होती है. अगली प्रजाति बिचौलियों की पायी जाती है, जो किसानों को बरगलाकर उनकी फसल को औने पौने मूल्य पर खरीदकर व्यावसायिक रूप में बड़े दामों में बेचने के जुगाड़ में लगे रहते हैं. उनके कार्यों में नाना प्रकार से सहयोग करने वाले उनके चट्टे – बट्टे के पूरे गिरोह के माननीय सदस्य भी स्वयंभू किसान कहलाते हैं. इसके अतिरिक्त तथाकथित किसानों की एक प्रजाति और पायी जाती है, जो उपरोक्त अंकित सभी प्रजातियों को संगठित कर आन्दोलनजीवी होते हैं. जानकार बताते हैं कि इनका भरण – पोषण उपरोक्त अंकित प्रजातियों के अतिरिक्त राजनीति में आकंठ डूबे लोग तथा अच्छे से बुरे, देश से लेकर विदेशों तक फैले पूरा फैला हुआ तंत्र भी समय – समय पर करता है. इसकी सत्यता या तो समय के गर्भ है अथवा सही जानकारों के पास. अंतिम बचे – खुचे लोग असल में किसान हैं. इनका मुख्य कार्य कर्ज लेकर पसीना बहाकर, अभावों के बीच संघर्ष कर खेती करने में लगा रहना है. इसके अतिरिक्त कर्जदारों के अत्याचार के आगे नतमस्तक रहना, बिचौलियों और अन्य सभी प्रजातियों के द्वारा शोषित होते रहना और आत्महत्या करना है. ऐसी प्रजाति किसी को साधारणतया अपना दुःख, अपनी पीड़ा नहीं बताते. राजनीति से दूर रहते हैं. अपने आँसू स्वयं पोछते हैं.

 प्रसंग किसान आंदोलन के कालखंड का है. किसी गॉंव में एक किसान अपने छोटे खेत में धान काट कर उस नमी वाले खेत में सब्जी के पौधे लगाकर थक गया. थककर मेढ़ पर भूमि पर बैठ गया. तभी गाँव के ही साहूकार का साला, जो प्रेस में सफल होने लगा था, कैमरा और माइक लेकर एक आदमी के साथ आ धमका. कैमरा सेट कर माइक मुँह के पास लाकर बोला – आप किसान हैं ?बेचारा किसान रोने लगा. रोते – रोते कहा – हाँ. साहूकार के साले ने पूछा – किसान कानून के बारे में क्या कहना है ? किसान जोर – जोर से रोने लगा. साहूकार के साले ने कहा – आप किसान हैं,आपको क्या कष्ट है, सरकार को आपके लिए क्या करना चाहिए ? आपका साहूकार, जो दूसरे गॉंव का है,आपका शोषण करता है ?किसान ने रोते हुए कहा – मेरा कष्ट सिर्फ यही है कि आप मेरी बायीं हथेली को अपने जूते से दबाकर रखे हैं. साहूकार कहीं का हो, आपके ससुर भी क्यों न हों, शोषण तो सभी करते हैं जी. कट का स्वर सुनाई दिया. दोनों किसान के पास से चले गए. शाम को टीवी पर किसान को रोता दिखाकर बताया गया कि आज किसान रो रहा है. दूसरे गॉंव के साहूकार उसका शोषण करते हैं. बाद में पता चला कि दूसरे गाँव के साहूकार ने उस गाँव में सूदखोरी का धंधा बंद कर दिया और अपने ही गाँव के सूदखोर की शरण में चले गए. बस बात इतनी हुई कि किसान फिर से रोया.