आजकल देश में पगडंडियों का जमाना है।कोई भी मंज़िल सीधे रास्ते से नहीं मिलती।पगडंडियों से,शॉर्टकट से जाओ तो तुरन्त ही मिलती है।यह पगडंडियाँ मंज़िल के पिछले दरवाजे पर ले जाती हैं।फिर आराम से ,ठाट से पिछले दरवाजे से मंज़िल में घुस जाओ,उसपर कब्जा जमा लो।पगडंडियों के सहारे सफलता के उदाहरणों की कोई कमी नहीं है।
नए युवा हुए लड़कों का आजकल ज्यादा समय चलन्त दूरभाष यथा मोबाइल पर बीतता है।इसके सहारे प्रेम की भी पगडंडी शॉर्टकट हो चली है।ये नव युवा को कोई कन्या दिख जाती है तो उसके बारे में कोई जानकारी भी नहीं इकठ्ठी करते।सीधा उसका मोबाइल नम्बर का जुगाड़ रिचार्ज वाले को पटिया कर ले लेते हैं।फिर तथाकथित प्रेम की पगडंडियों पर एकदम से निकल पड़ते हैं।बात बनी तो चल निकली।नहीं बनी तो कन्या के तथाकथित दूसरे प्रेमी,जो पहले से जो उसी तरह प्रेम की उसी पगडंडी पर आगे निकल चुका है,अथवा परिवार से बुजुर्गों से शारीरिक क्षति कारित करा देती है।पगडंडी छूट जाती है।फिर वह नई संभावनाएं खोजता फिरता है।यह प्रक्रिया तबतक चलती है जबतक सही ढंग से प्रेम की पगडंडी न पकड़ा जाए।
रवि बाबू कहते हैं-प्रेम की पगडंडी भयो,टेढ़ो-टेढ़ो जाए।प्रेम की डगर पकड़ कर पगडंडियों पर जाना कोई ठठ्ठा नहीं।यह रास्ता खासकर जोखिम भरा होता है और ताक-झांक वालों से बड़ा सावधान रहना पड़ता है। थोड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती है।रिस्क लेना पड़ता है।बात गोपनीय ढंग से सिलसिले तक चलाना पड़ता है।छिपते-छुपाते प्रेम की पगडंडी पर चलना पड़ता है।कोई देख ले और शक करे इससे बचने के लिए बहानों का पूरा शब्दकोश कंठस्थ करना पड़ता है।इस क्रिया में खर्च भी बहुत लगता।मालूम नहीं प्रेमिका महोदया की कब क्या फरमाइश हो जाए।पहले तो मामला फिक्स्ड था कि चाँद तोड़कर लाना है।अब मामला बदल गया है।शुरुआत नए,मंहगे और लेटेस्ट मोबाइल फोन की मांग से शुरू होती है।फिर यह आईफोन तक जा सकता है इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।पहले प्रेमिकाओं के शौक छोटे-छोटे होते थे।बुरा हो इलेक्ट्रॉनिक गजेट बनाने वालों का।आप सर्वे कर देख लो।प्रेम की पगडंडियों के युवाओं पर इसका बोझ सबसे ज्यादा होने लगा है।फिर प्रेम की पगडंडियों में गजेट की दुकानों के आगे रेडीमेड कपड़ों की दुकान,मंहगे गिफ्ट की दुकान,फिर सिनेमा घर,मॉल,रेस्टोरेंट्स आदि होते हैं।इस क्रिया-कलाप में यात्री कंगाल होने के बचने के लिए छोटी-मोटी चोरियों के बाद मोटरसाइकिल, गले की चेन आदि खोजने लगता है।उसका एकमात्र प्रबुद्ध शुद्ध उद्देश्य बेखटके प्रेम की पगडंडियों पर चलना होता है।इसमें यह सब तो नव प्रेमियों को करना होता है।इसके बाद भी खटका होता है कि कब प्रेमिका नाराज़ हो जाये और ब्रेकअप कर दे।उसके बाद की स्थिति और खर्चीली होती है।निराश प्रेम देवदास बनना चाहता है।सबसे पहले वह मधुशाला की शरण गहता है।इसमें सिगरेट उनकी मदद करता है।फिर महीने-दो-महीने बाद प्रेमिका को किसी अन्य के साथ प्रेम की पगडंडी पकड़ते देखता है।तब वह नई संभावनाएं तलाश करने लगता है।मिल गयी तो वही फिर से उसी पगडंडी पर उन्हीं दुकानों से होता हुआ डरते डरते बढ़ता है।प्रेम की पगडंडी पर भीड़ रहती है।
पहले ऐसा नहीं था।प्रेम की पगडंडी सूनी और छिपी होती थी।पगडंडी के रास्ते बाग-बगीचे होते हैं।प्रेमी और प्रेमिका समेँ फूलों की डालियों से लिपट कर गाने गाते थे।फिर कुछ गानों के बाद इन पार्कों के अक्सरहाँ विरह के गीत बजने लगते थे।वर्षों बाद प्रेम की पगडंडी के दोनों राही कहीं मिलते तो नायिका अपने बच्चों से उसका परिचय कराते कहती-बच्चों, मामा जी को नमस्ते करो।
अब ऐसा नहीं होता।चलन जमाने के साथ बदल गया है।प्रेम की पगडंडी भी विकास कर कंक्रीट की सुविधापूर्ण हो गयी है।
रवि बाबू अनुभवी हैं। जमाना देखा है।पर वे अब प्रेम की नई कंक्रीट वाली पगडंडी पर भी चलने को इच्छुक हैं।मैंने उन्हें हिदायत दी है कि भैया,जरा उम्र का भी ख्याल करो।वे कहते हैं-देखो भाई,आदमी जवान नहीं होता।आदमी का पैसा जवान होता है।जब तक पैसा है फेंकने दो,तमाशा देखने दो।
इस बात से मेरा और रवि बाबू की दोस्ती टूट गयी है।क्या आप रवि बाबू को समझाएंगे?