क – समझते क्या हो अपने को?
च – आप जानते भी हो, हम क्या हैं?
क – हमें जरूरत क्या है आपको जानने की? बहुत उड़ रहे हैं आप? अभी बताते हैं.
च – हम भी देखते हैं, आप क्या बताइएगा.
क – अरे पुनितावा ! बुलाओ सब को लाठी ले के.
च – बुलाओ, बुलाओ ! देखें कौन – कौन हिम्मत कर के आता है.
क – अरे आओ सब जल्दी से. ललकार रहा है हमको.
तभी दस -पंद्रह मुस्टंडे लाठी लेकर आ धमकते दूर से दीखते हैं.
मुस्टंडों का सामूहिक स्वर – अरे कौन है, मेहमान? अभिए कूटते हैं.
क – यहीं सामने खड़े हैं, लउक नहीं रहा है.
पास आकर मुस्टंडे च को देखकर अपनी-अपनी लाठी फेंक कर भाग जाते हैं. चिल्लाते हुए भागकर कहते जाते हैं – भागिए मेहमान. जान प्यारी है तो पहली गली से भागिए. सुनकर कर हतप्रद रह गए. उन्हें काठ मार गया. घबराहट में लठैतों के पीछे दौड़ लिए. च मुस्कुराते हुए आगे चले गए. रास्ते में सुस्ताकर क घर पँहुचे भी न थे कि देखा, घर पर लाल टोपी, खाकी वस्त्र में एक सिपाही घर के बाहर खड़ा है. क के हाथ – पाँव फुल गए. वे धीरे से खिसकते बँसवाड़ी की ओट में जाकर तब तक छिपे रहे, जबतक अँधेरा न हुआ और वह सिपाही चला नहीं गया. घर जाते ही पाया कि घर में कोहराम मचा है.सास दहाड़ मार कर रो रही हैं. ससुर माथा पकड़े बाहर खटिया पर सुबक रहे हैं.घरवाली तमतमाई उसे खोज रही हैं. क पर दृष्टि पड़ते ही चीख उठीं.
घरवाली – कउनो जन्म का पाप था कि आपसे विवाह हुआ. आज आपने हमारे माई – बाबू का इज्जत मिट्टी में मिला दिए. पुश्तों में पहली बार घर पर पुलिस आयी. हमको आपके साथ रहना ही नहीं है.
क (आश्चर्यचकित होकर ) – अरे भाग्यवान, बताओ तो हुआ क्या?
घरवाली – क्या नहीं हुआ? हमरे परिवार की नाक कटा दिए आप और उल्टे ऊपर से पूछते हैं कि क्या हुआ है.सिपहिया आपको बुलाने आया था. क्या काण्ड कर दिए हैं जी? हम आपको अच्छा आदमी समझते थे. सरकारी मास्टरी क्या मिली, अपने को लाट साहेब समझने लगे. आखिर आप अपने को समझते क्या हैं? अरे मास्टर से बड़ा लोग बहुते है समाज में. काहे पंगा लेते फिरते हैं और उ भी ससुराल में. आपका ई लक्षण हम जानते तो काहे आपसे विवाह करते? मेरा भाग्य फूट गया. एक से एक संबंध आया था हमारे लिए. अब भी हम आपको छोड़ दें तो हमसे विवाह करने के लिए लाइन लग जाएगी. हम बहुते सुंदर जो हैं.
क – अरे जाओ !सरकारी मास्टर को एक से एक सुंदर लड़की मिल जाएगी. ई तो हमरे पप्पा दहेज के लालच में हमारा विवाह तुमसे करवा दिए. लेकिन बताओ कि उ था कउन?
घरवाली – थाना का खबरची रघु है उ. जिसकी चुगली कर देता है उसकी कम से कम साल भर जेल हो जाती है.
क – ठीक है, तीने कोस दूर है न थाना. हम अभी जाते हैं.
तभी फटफटिया से थानेदार आ धमकते हैं.
थानेदार – क्या रे मास्टर बहुत उड़ने लगा है? इतना कहकर थानेदार क को हाथ पकड़कर खींचने लगे. क की घरवाली, सास -ससुर दौड़ते हुए आकर थानेदार का पैर छान लिए और गिड़गिड़ाते हुए बोले – माफ़ कर दीजिये. हमलोग स्वयं ही शर्म से गाँव छोड़ देंगे. मेहमान से गलती हो गयी.
थानेदार अपने पैर छुड़ाते हुए बोले – अरे उ बात नहीं है. ई मास्टर मेरे साथ दरोगा परीक्षा का तैयारी करता था. इसकी मदद से ही हम आज दरोगा हैं. हमको इनके आने का पता चला तो रघु को इनको बुलाने के लिए हम ही भेजे थे. इतना कहकर थानेदार ने क को गले लगा लिया.
क – तुम थानेदार हो. ससुरे तुम अपने को समझते क्या हो? हम क्या हैं? तुमरे मित्र ही तो हैं. फिर एक ठहाका गाँव में गूँज गया. दरोगा जी से क के सास -ससुर के पाँव छुए और क की घरवाली को नमस्ते किया. फिर हँसते हुए बोले – हम दोनों क्या हैं? दूर देखा गया कि च की घिघ्घी बंधी है.
क (चिल्लाते हुए ) – देखो, हम क्या हैं !