पूर्णेन्दु सिन्हा पुष्पेश।
झारखंड में चुनावी तैयारियाँ अब अपने चरम पर पहुँच रही हैं। मौजूदा सरकार, जिसका नेतृत्व झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कांग्रेस गठबंधन कर रहा है, आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नई-नई रणनीतियाँ अपनाने में जुटी है। वहीं, विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है। झारखंड की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार का चुनाव बेहद रोचक और संघर्षपूर्ण होगा।
झारखंड की चुनावी पृष्ठभूमि
झारखंड, जो 2000 में बिहार से अलग होकर एक नया राज्य बना, आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों समुदायों के लिए राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। राज्य की 26% आबादी आदिवासी है, जो यहाँ के चुनावी समीकरण को प्रभावित करती है। 2024 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, आदिवासी और गैर-आदिवासी वोटों का समीकरण सबसे अधिक चर्चा का विषय है। दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ—बीजेपी और जेएमएम—इस समीकरण को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं।
बीजेपी की रणनीति: आदिवासी इलाकों में पकड़ बनाने की कोशिश
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने झारखंड की 14 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन आदिवासी बहुल इलाकों में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित पांच में से एक भी सीट बीजेपी नहीं जीत पाई थी, जो उसके लिए एक बड़ा झटका था। अब विधानसभा चुनावों के लिए, बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।
आदिवासी विरोधी छवि से निपटने की कोशिश
बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती उसकी “आदिवासी विरोधी” छवि है, जो रघुबर दास की सरकार के दौरान भूमि कानूनों में हुए बदलावों के कारण बनी। इस छवि से निपटने के लिए बीजेपी ने अपने आदिवासी नेताओं को प्रमुख भूमिका में रखा है। पार्टी की योजना है कि आदिवासी समुदायों के बीच नेताओं की लोकप्रियता का लाभ उठाया जाए, ताकि आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की जा सके।
सुरक्षा और घुसपैठ का मुद्दा
बीजेपी ने अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ और रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे को भी उछाला है, जो आदिवासी समुदायों के बीच असुरक्षा की भावना को भुनाने की कोशिश है। बीजेपी यह संकेत दे रही है कि बाहरी लोगों की उपस्थिति से आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और उनकी पहचान खतरे में है। इस मुद्दे का असर विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है, खासकर आदिवासी इलाकों में।
गैर-आदिवासी वोट बैंक पर फोकस
ओबीसी, दलित, मुस्लिम और सवर्ण वोट बैंक पर भी बीजेपी की नजर है। विशेषकर ओबीसी समुदाय, जो राज्य की 45-50 प्रतिशत आबादी का हिस्सा है, बीजेपी के पक्ष में जाता रहा है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गैर-आदिवासी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था, और अब पार्टी इसे विधानसभा चुनावों में दोहराने की कोशिश कर रही है। गैर-आदिवासी वोटों के साथ-साथ, बीजेपी ने आदिवासी इलाकों में भी अपनी पैठ बनाने के लिए अपने नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस की रणनीति
हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने आदिवासी समुदाय के बीच अपनी स्थिति को मजबूत किया है। हेमंत सोरेन ने अपने पिता शिबू सोरेन की विरासत को मजबूती से संभालते हुए आदिवासी हितों की लड़ाई को आगे बढ़ाया है।
आदिवासी वोट पर पकड़
जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन आदिवासी समुदायों के हितों के लिए लंबे समय से काम करता आया है। लोकसभा चुनावों के परिणामों के बावजूद, हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों को खुश करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इनमें सबसे प्रमुख रहा है सरना धर्म कोड की मांग का समर्थन, जो आदिवासी समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। इसके अलावा, सरकार ने 1932 के खातियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की भी पहल की है, जिससे आदिवासी समुदायों के बीच उनकी स्थायी पहचान बनी रहे।
महिलाओं के लिए योजनाएं
महिलाओं को आकर्षित करने के लिए हेमंत सोरेन सरकार ने मईंया योजना की शुरुआत की है, जिसके तहत राज्य की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। चुनावी विश्लेषण यह दर्शाता है कि महिलाएं अब पारिवारिक दबाव से मुक्त होकर अपने फायदे-नुकसान का स्वतंत्र आकलन कर रही हैं। ऐसे में यह योजना महिलाओं के वोट बैंक को अपनी ओर खींचने में अहम भूमिका निभा सकती है।
जातिगत जनगणना और ओबीसी वोट बैंक
राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस जातिगत जनगणना की लगातार मांग कर रही है। इसका मकसद है कि ओबीसी समुदाय के वोट बैंक को अपने पक्ष में किया जाए। झारखंड में ओबीसी समुदाय का बड़ा हिस्सा है, और जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाकर कांग्रेस इस समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। अगर कांग्रेस इसमें सफल होती है, तो यह गठबंधन को एक महत्वपूर्ण बढ़त दिला सकता है।
नई और छोटी पार्टियों का उभरता दबदबा
झारखंड में नई और छोटी पार्टियाँ भी आदिवासी और गैर-आदिवासी वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। राज्य की राजनीतिक फिज़ा में इन पार्टियों का उभार विशेष रूप से देखा जा रहा है, जो स्थानीय मुद्दों और आदिवासी हितों को प्रमुखता से उठा रही हैं।
आदिवासी वोटों पर प्रभाव
छोटी पार्टियों का मुख्य फोकस आदिवासी समुदायों के वोट हैं। ये पार्टियाँ आदिवासियों की स्थानीय समस्याओं जैसे जमीन अधिकार, रोजगार, और विकास की कमी पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। आदिवासी क्षेत्रीय दलों ने विशेष रूप से आदिवासी अधिकारों को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है। हालांकि, इन दलों के पास व्यापक समर्थन नहीं है, लेकिन वे आदिवासी वोट बैंक में विभाजन का कारण बन सकते हैं।
गैर-आदिवासी वोटों पर प्रभाव
गैर-आदिवासी समुदायों, खासकर ओबीसी और दलित मतदाताओं के बीच भी कुछ नई पार्टियाँ उभर रही हैं। इन पार्टियों का मुख्य एजेंडा रोजगार, शिक्षा, और सामाजिक न्याय से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित है। यदि ये पार्टियाँ सफल होती हैं, तो वे गैर-आदिवासी वोट बैंक में भी सेंध लगा सकती हैं, जिससे बीजेपी और जेएमएम दोनों को नुकसान हो सकता है।
चुनावी परिणामों की संभावनाएँ
आगामी विधानसभा चुनाव में आदिवासी और गैर-आदिवासी वोटों का समीकरण सबसे महत्वपूर्ण होगा। जेएमएम और कांग्रेस को आदिवासी वोटों के साथ-साथ गैर-आदिवासी वोटों को भी अपने पक्ष में करने की जरूरत है। अगर बीजेपी अपनी आदिवासी विरोधी छवि को सुधारने में सफल होती है, तो वह आदिवासी क्षेत्रों में वापसी कर सकती है।
महिला वोटरों का समर्थन इस बार निर्णायक साबित हो सकता है, खासकर मईंया योजना जैसी सरकारी योजनाओं के चलते। वहीं, कांग्रेस की जातिगत जनगणना की मांग भी ओबीसी समुदाय के वोटों को प्रभावित कर सकती है।
हालाँकि, बीजेपी की मजबूत गैर-आदिवासी वोट बैंक और कुछ आरक्षित सीटों पर उसकी बढ़त उसे सत्ता के करीब ला सकती है। वहीं, छोटी पार्टियाँ भी कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे मुख्य दलों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है।
अंततः, चुनाव परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन-सी पार्टी आदिवासी और गैर-आदिवासी वोटों के संतुलन को सफलतापूर्वक साध पाती है। अगर बीजेपी आदिवासी क्षेत्रों में 5-7 सीटें जीतने में कामयाब होती है, तो सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। वहीं, जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन आदिवासी वोटों के साथ-साथ ओबीसी और मुस्लिम समुदायों का समर्थन हासिल करके सत्ता में वापसी कर सकता है।