सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, और इस बार चुनावी मैदान में जो सबसे बड़ी बात देखने को मिल रही है, वह है जनता का अपने वर्तमान विधायकों के प्रति नाराजगी का भाव। झारखण्ड के अनेक विधान सभा क्षेत्रों में तरक्की की वही पुरानी तस्वीर है जो आज से कई वर्षों पूर्व रही थी; भले ही वहां का वर्तमान विधायक विगत 10-10 वर्षों से विधायकी का सुख भोग रहा हो। उनका मुख्य कार्य मानो आरोप – प्रत्यारोप से ज्यादा कुछ नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में जो भी राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं, उन्होंने जनता के मन में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वही पुराने चेहरे एक बार फिर से सत्ता में आने के योग्य हैं? या हमें नए चेहरों की जरूरत है?
पिछले एक दशक में झारखंड की राजनीति ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सत्ता में आने वाली सरकारों ने जनता से जोयह साफ़ दिख पड़ता वादे किए थे, वे अधिकतर अधूरे ही रह गए हैं। बुनियादी ढांचे का विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और रोजगार जैसे मुद्दे आज भी झारखंड की जनता के लिए बड़ी चिंता बने हुए हैं। जब हम वर्तमान विधायकों की कार्यशैली पर नजर डालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में असफल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, लोगों में आक्रोश और निराशा की भावना उत्पन्न हुई है।
बिजली, पानी, सड़क, और अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में जनता की नाराजगी देखी जा रही है। झारखंड के कई हिस्सों में बिजली की समस्या आज भी बनी हुई है, जिससे न केवल आम जीवन प्रभावित होता है, बल्कि उद्योगों के विकास में भी बाधा उत्पन्न होती है। इसके साथ ही, पानी की किल्लत भी एक गंभीर समस्या है, खासकर उन इलाकों में जहां सरकार ने जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं का वादा किया था। लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी भी बड़ी संख्या में लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है।
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी चिंताजनक है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं की कमी, डॉक्टरों की अनुपस्थिति, और बुनियादी आवश्यकताओं का अभाव लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है। कोरोना महामारी के दौरान यह स्थिति और भी स्पष्ट हो गई जब लोग इलाज के लिए दर-दर भटकते रहे। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि जनता ने अपने वर्तमान विधायकों को दोषी ठहराते हुए नए चेहरों की तलाश शुरू कर दी है।
इसके अलावा, झारखंड में बढ़ती बेरोजगारी भी लोगों के आक्रोश का एक प्रमुख कारण है। सरकार ने नौकरी के कई वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा करने में नाकाम रही है। युवा पीढ़ी, जो भविष्य की उम्मीदों के साथ अपनी जिंदगी का निर्माण करना चाहती है, वह वर्तमान विधायकों की असफलताओं के कारण निराश है। यही कारण है कि अब वे नए चेहरों को देखने के लिए तैयार हैं, जो विकास और रोजगार के नए अवसर ला सकें।
भ्रष्टाचार भी एक ऐसी समस्या है, जिसने झारखंड की राजनीति को एक तरह से ग्रसित कर दिया है। जनता ने महसूस किया है कि चुनावी वादों का पालन नहीं हो रहा है, और जो योजनाएं लागू हो रही हैं, उनमें भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। इससे जनता का विश्वास सरकार और उसके विधायकों पर से उठता जा रहा है। ऐसे में, नए चेहरों के प्रति लोगों का झुकाव और भी बढ़ रहा है।
इस समय, कई युवा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ये नए चेहरे जनसरोकारों से जुड़ी समस्याओं को पहचानने और उनके समाधान के लिए तत्पर हैं। यह भी एक सकारात्मक संकेत है कि अब युवा वर्ग राजनीति में सक्रिय हो रहा है। ऐसे नए चेहरों की मौजूदगी से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे बेहतर विकल्प प्रदान कर सकते हैं और लोगों के मुद्दों को प्राथमिकता दे सकते हैं।
राजनीतिक दलों को भी अब यह समझ लेना चाहिए कि केवल पुराने चेहरों के भरोसे चुनाव जीतना संभव नहीं है। जनता की भावनाओं को समझते हुए उन्हें नए चेहरों को भी आगे लाना होगा, जो न केवल युवा हो, बल्कि उन समस्याओं के प्रति संवेदनशील भी हों, जिनका सामना आम जनता कर रही है।
हालांकि, यह भी सच है कि केवल नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतारने से स्थिति में बदलाव नहीं आएगा। नए नेताओं को भी जनता के विश्वास को जीतने के लिए अपने कार्यों को गंभीरता से लेना होगा। उन्हें जनता के मुद्दों को समझना होगा और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
झारखंड में विधानसभा चुनावों का यह समय महत्वपूर्ण है। जनता की नाराजगी और नए चेहरों की संभावनाएं इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक दल अपने दृष्टिकोण को बदलें और जनता की उम्मीदों पर खरे उतरें। आने वाले चुनावों में कौन सा दल, कौन सा चेहरा, जनता का दिल जीतने में सफल होता है, यह देखने योग्य होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि अब जनता परिवर्तन की चाहत रखती है, और वे उस परिवर्तन को अपनी वोट के माध्यम से लाने के लिए तैयार हैं।
यदि वर्तमान विधायक अपनी नीतियों और कार्यों में सुधार नहीं करते हैं, तो उन्हें चुनावी मैदान में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, नए चेहरों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है कि वे जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता स्थापित करें और समाज के हर वर्ग की जरूरतों को समझते हुए उनके विकास के लिए कार्य करें।
आखिरकार, लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि जनता अपने अधिकार का प्रयोग कर सही नेतृत्व चुन सकती है। झारखंड की राजनीति में अब एक नई बयार की आवश्यकता है, और यह बयार नए चेहरों के माध्यम से ही आ सकती है, जो जनता के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार हों।
हालाँकि, सिर्फ सैद्धांतिक बातों से तस्वीरें नहीं बदलती हैं; वास्तविक बदलाव तभी संभव है जब उसे लागू करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। यह बदलाव करना जनता की जिम्मेदारी है, क्योंकि लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ जनता के हाथ में है। झारखंड के प्रत्येक क्षेत्र की स्थानीय जनता अच्छी तरह जानती है कि उसका वर्तमान विधायक कितनी क्षमता रखता है और उसकी कार्यशैली कितनी प्रभावी है। जनता को केवल पार्टी के नाम या चुनावी घोषणाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें उस व्यक्ति विशेष की वास्तविक उपलब्धियों और विफलताओं को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण उसकी सक्षमता का और उसकी राजनैतिक समझ का।
इस चुनावी प्रक्रिया में, यह आवश्यक है कि जनता अपने निर्णय को केवल पार्टी के आधार पर न करें, बल्कि उन व्यक्तियों के कार्यों और उनके समाज के प्रति समर्पण को भी प्राथमिकता दें। जनता को यह निर्णय लेना होगा कि क्या वह व्यक्ति उनके क्षेत्र के विधायक बनने के योग्य है या नहीं। इसके लिए, उन्हें यह विचार करना होगा कि उस व्यक्ति ने अपने पिछले कार्यकाल में क्या किया है और वह भविष्य में क्या करने का वादा कर रहा है। ऐसा निर्णय जनता की जागरूकता और उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है, और यही सच में बदलाव का आधार बन सकता है।