सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड में हाल ही के दिनों में कई प्रमुख घटनाएँ सुर्खियों में रही हैं, जिन्होंने राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक ढांचे को प्रभावित किया है। राज्य की सरकार, प्रशासन और जनता के बीच इन घटनाओं ने एक नया संवाद स्थापित किया है। झारखंड की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करते हुए, इंटरनेट बंदी का विवाद, भ्रष्टाचार के आरोप, और चुनावी सरगर्मी के बीच बदलते राजनीतिक समीकरण, सबकुछ मिलाकर एक जटिल परिदृश्य तैयार होता है। आइए इन घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण करते हैं।
हाल ही में, झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की परीक्षा के दौरान इंटरनेट सेवा को बंद किए जाने के फैसले ने राज्यभर में हलचल मचा दी। इंटरनेट की बंदी के कारण छात्रों, व्यापारियों, और आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इंटरनेट आज के समय में शिक्षा से लेकर व्यापार तक एक बुनियादी सुविधा बन चुकी है। इसलिए, इसे बंद करना न केवल अव्यावहारिक प्रतीत होता है, बल्कि प्रशासनिक अक्षमता की ओर भी इशारा करता है।
रक्षा राज्य मंत्री और रांची के सांसद संजय सेठ ने इसे सरकार की विफलता करार दिया। उन्होंने इंटरनेट बंदी की तुलना जम्मू-कश्मीर में होने वाली बंदियों से की और कहा कि जो लोग जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंदी पर हल्ला मचाते थे, वही अब झारखंड में इसे एक समाधान के रूप में देख रहे हैं। यह तर्क उठता है कि राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार और नकल जैसी समस्याओं से निपटने के लिए इंटरनेट बंद करने का विकल्प क्यों चुना? क्या यह सरकार की नीतियों और प्रशासनिक तंत्र की विफलता को दर्शाता है? इंटरनेट बंदी से न केवल छात्रों को दिक्कत हुई बल्कि यह प्रशासनिक अव्यवस्था की एक बड़ी मिसाल भी बनकर सामने आई है। सरकार को इस मुद्दे पर पारदर्शी नीति अपनाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो।
झारखंड सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नए नहीं हैं, लेकिन हालिया घटनाओं ने इन आरोपों को फिर से तूल दिया है। होमगार्ड विभाग में फर्जी नियुक्तियों का मामला इसका एक उदाहरण है, जिसमें फर्जी अभिलेखों के आधार पर कई लोग वर्षों से नौकरी कर रहे थे। इस मामले में कंपनी कमांडर समेत पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक स्तर पर भी गड़बड़ियाँ हो रही हैं।
यह स्थिति राज्य की शासन प्रणाली में गहरे बैठे भ्रष्टाचार को उजागर करती है। क्या यह सरकार भ्रष्टाचार रोकने में असमर्थ है, या फिर भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कोई भी सरकार इससे लड़ने में सफल नहीं हो पा रही? यह सवाल उठता है कि क्या राज्य की जनता को इस सरकार से वास्तव में वह उम्मीदें पूरी होती दिखाई देती हैं जिनके साथ उन्होंने इसे सत्ता में भेजा था?
भ्रष्टाचार का यह दौर केवल सरकारी तंत्र में ही नहीं, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। इसकी वजह से न केवल राज्य की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि इससे विकास की गति भी बाधित हो रही है। इस दिशा में सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे और प्रशासनिक सुधारों को प्राथमिकता देनी होगी।
झारखंड में चुनावी सरगर्मियाँ तेज हो रही हैं, और इसके साथ ही राज्य की राजनीति में उथल-पुथल भी देखी जा रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के खिलाफ बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने हमले तेज कर दिए हैं। इसमें भ्रष्टाचार के मुद्दे से लेकर प्रशासनिक विफलताओं तक, हर पहलू को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
संजय सेठ जैसे प्रमुख विपक्षी नेताओं ने सरकार की इंटरनेट बंदी जैसी नीतियों पर तीखे सवाल उठाए हैं। इसके अलावा, बीजेपी ने झारखंड में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नए सिरे से संगठनात्मक बदलाव भी किए हैं। खासतौर पर आदिवासी समुदाय को साधने के लिए बीजेपी नए समीकरण बिठाने में जुटी है।
वहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अपनी छवि को सुधारने और जनता के सामने अपनी सरकार की उपलब्धियों को प्रस्तुत करने में लगे हैं। विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं के जरिये सरकार जनता को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। लेकिन क्या यह चुनावी रणनीतियाँ वाकई में कामयाब होंगी, यह देखने लायक होगा। झारखंड की जनता अब अधिक जागरूक हो चुकी है और उसे केवल वादों से बहलाना आसान नहीं होगा।
झारखंड के युवाओं के लिए रोजगार का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। जेएसएससी की परीक्षा में शामिल होने वाले लाखों छात्रों की संख्या इस बात का प्रमाण है कि राज्य में रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं। बेरोजगारी के इस संकट से निपटने के लिए सरकार को ठोस नीतियाँ बनानी होंगी।
इंटरनेट बंदी के दौरान युवाओं के सामने आई समस्याओं ने भी सरकार की संवेदनहीनता को उजागर किया है। क्या सरकार वाकई इस मुद्दे पर गंभीर है, या फिर इसे केवल चुनावी जुमलों के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब समय के साथ मिलेगा, लेकिन यह तय है कि रोजगार के मामले में झारखंड की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
राज्य में औद्योगिक विकास की कमी, निवेश की धीमी गति और प्रशासनिक जटिलताओं ने रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है। इस दिशा में बड़े बदलावों की आवश्यकता है, ताकि युवा झारखंड में ही रोजगार पा सकें और उन्हें बाहर जाकर नौकरी की तलाश न करनी पड़े।
झारखंड की राजनीति में आदिवासी समुदाय की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। हाल ही में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए विभिन्न दलों के बीच होड़ मची हुई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार आदिवासी हितों की बात करती है, लेकिन विपक्षी दल भी इस समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नए-नए वादे कर रहे हैं।
आदिवासी समाज के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी कई समस्याएँ हैं, जिन्हें हल करना आवश्यक है। सरकार द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयास सराहनीय हो सकते हैं, लेकिन उन पर अमल कितना हो रहा है, यह देखने वाली बात है। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि केवल वादों से आदिवासी समाज का भला नहीं हो सकता, बल्कि ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है।
झारखंड की मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो यह साफ दिखाई देता है कि राज्य में प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक मोर्चों पर चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। इंटरनेट बंदी का विवाद, भ्रष्टाचार के मामले, बेरोजगारी और चुनावी सरगर्मी ने राज्य की राजनीति को जटिल बना दिया है।
राज्य सरकार को इन समस्याओं से निपटने के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे। केवल लोकलुभावन योजनाओं और वादों से जनता को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। झारखंड की जनता अब जागरूक हो चुकी है और वह विकास, रोजगार और पारदर्शी शासन की उम्मीद करती है।
आने वाले चुनावों में राज्य की राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन यह तय है कि झारखंड की जनता बदलाव चाहती है, और यह बदलाव तभी संभव होगा जब सरकार और विपक्ष दोनों ही अपनी नीतियों और कार्यप्रणालियों पर पुनर्विचार करेंगे।