द्रौपदी चीरहरण पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–

मैं दुखिया शरन तुम्हारी, 
अब तो राखो लाज मुरारी । 
बीच सभा में दुष्ट दुशासन, 
खींचत चीर हमारी । 
भीष्म द्रोण गुरु कृपाचार्य सब, 
देखत नैन उघारी । 
अब तो राखो लाज हमारी । 
मैं दुखिया शरन तुम्हारी……. 
नृप धृतराष्ट्र मौन हैं साधे, 
बैठे पाँच पती मनमारी । 
तुम बिन और नहीं कोइ दूजा, 
गोबर्धन गिरधारी । 
अब तो राखो लाज हमारी । 
मैं दुखिया शरन तुम्हारी……. 
आरत बचन सुनी जब प्रभु ने, 
दिन्हिं बसन पट डारी । 
खैंचत चीर दुशासन हारा, 
राखी लाज मुरारी । 
अब तो राखो लाज हमारी । 
मैं दुखिया शरन तुम्हारी…….
******
रचनाकार
 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

 
							 
 
         
 
        