कन्यादान —-
वह पिता बड़ा बड़भागी है ,
जिसने बेटी को जनम दिया ।
पाला पोषा और बड़ा किया ,
अपरिमित प्यार दुलार दिया ।
जब बड़ी हुई तो प्रेम पुलकि,
बेटी का कन्यादान किया ।
कन्यादान से बढ़कर कोई,
दान नहीं है दूजा ।
कन्यादान से बड़ा जगत में
नहीं है कोई पूजा ।
चली आ रही युगों युगों से,
रीति ये परम पुनीता ।
जनक ने दान किया श्रीराम को,
प्यारी पुत्री सीता ।
पर्वतराज हिमाचल ने भी,
कन्यादान का सुख पाया ।
सौंपि पार्वति महादेव को,
कन्यादान की रीत निभाया ।
रे मूरख मानव बेटी को,
मारो मत माता के गर्भ में ।
कन्यादान पुत्रि का करि के,
जीवन सफल बनालो जग में ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र