कहाँ गए वे दिन ? —-
चारु चन्द्र की चंचल किरणें ,
बरस रही थीं आँगन में ।
खेल रहे थे लाल हमारे ,
आँख मिचौली आँगन में ।
गैया बछिया पड़वा पड़िया ,
कूदत फाँदत आँगन में ।
आता था आनन्द वो कितना ,
घुघुआ माना खेलन में ।
सावन भादो जब आता था ,
झूला लागत बागन मे ।
कृष्ण कन्हैया राधा के संग ,
झूला झूलत झूलन में ।
कहाँ गए वे दिन अब प्यारे ?
रह गए मात्र खयालन में ।
गावँ उजड़ गए रहा न रौनक ,
शहर की ओर पलायन में ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र