हे कृष्ण कहाँ हो छुपे…… ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

आज समाज ऐसा दूषित हो गया है कि कौन सज्जन है और कौन दानव पहचान करना मुश्किल हो गया है।पग पग पर यहाँ दुर्योधन और दुःशासन भरे हुए हैं। बेटियों के अस्मत से खेलना तो आम बात हो गई है। समाज के लोग भी भिष्म, द्रोण, कृपाचार्य के समान बेवश और दर्शक बन कर रह गए हैं। प्रशासन भी अंधा धृतराष्ट्र की तरह चुप हो गया है। मैने अपनी इस रचना के माध्यम से बेटियों की अस्मिता की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण से प्रार्थना की है :—–

हे कृष्ण कहाँ हो छुपे ,
बेटियाँ तुझको आज पुकार रहीं ।
पग पग दुःशासन भरे यहाँ ,
और कौरव की भरमार हुई ।
अब आओ राखनहार ,
आज अस्मत ये तारोतार हुई ।
हे कृष्ण कहाँ हो छुपे………
सब बने भिष्म और द्रोण यहाँ ,
अंधा धृतराष्ट्र भी मौन यहाँ ।
अब उठो शस्त्र धारण कर लो ,
है विनती तुझसे आज यही ।
हे कृष्ण कहाँ हो छुपे………
अब कोइ नहीं तुम बिन रखवाला ,
हे मुरलीधर नन्द के लाला ।
अब उठो चक्र धारण कर लो ,
दुष्टों का करो संहार तुम्हीं ।
हे कृष्ण कहाँ हो छुपे………

 

रचनाकार


ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र