शिव जी के निरालेपन पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
शिव शंभू हमारा निराला रे ।
शमसान भस्म बदन पर धारे,
गरवा में सर्पों की माला रे ।
शिव शंभू हमारा…………
दूज चन्दरमा भाल पै शोभे,
कमर में शोभे मृगछाला रे ।
शिव शंभू हमारा…………
हाथ त्रिशूल डमरु शिव शोभे,
जटवा में गंगा की धारा रे ।
शिव शंभू हमारा…………
घर न दुआर न सेज न शैय्या,
अम्बर हीं शिव के दोशाला रे ।
शिव शंभू हमारा…………
भाँग धतूर के भोग लगावै,
पी गए जहर का प्याला रे ।
शिव शंभू हमारा…………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र