भैया जी दो बार चुनाव जीत कर अब तीसरी बार विधायकी के चुनाव मैदान में थे. जिस जनता के पास जाते, वह गुस्से में उन पर चिल्लाता, झिड़क कर भगा देता. एक स्वर से जनता कहती कि पिछले दो चुनावों से आप इस क्षेत्र को राजधानी से जोड़ने के लिए नदी पर पुल बनवा देंगे. नदी भी तो सूखती जा रही है. पिछले दो चुनावों में आपने इसके लिए शपथ भी ली. इस बार तो आपको मत देंगे ही नहीं. भैया जी के गिड़गिड़ाने का जब असर नहीं हुआ तो वे लिखित रूप से दिए कि पुल दो साल में बनकर रहेगा नहीं तो मेरे नाम पर कुत्ता पाल लेना. किसी ने धीरे से कहा – वह तो हम पाल चुके हैं. भैया जी विचलित नहीं हुए. बाकि जाति, पैसे और नाना प्रकार के हथकंडों से भैया जी विजयी हुए और फिर से मंत्री बन गए. सबसे पहले उनके ठीकेदार भाइयों, भतीजों और सालों से धन्यवाद दिया.
छः माह बाद क्षेत्र के लोगों ने भैया जी का पुल बनाने वाला शपथपत्र समाचार पत्रों में छपवा दिया. सभी स्थानों पर थू -थू से अंत में तंग आकर भैया जी ने एक सबसे कर्मठ और अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्द लेकिन विभाग में दर – दर की ठोकरें खाते वरीय असैनिक अभियंता को बुलाया और कहा कि बरसात के दिनों का भी अवलोकन कर उस नदी पर पुल निर्माण का एक प्रतिवेदन तैयार कर अनौपचारिक रूप से उन्हें दें. अभियंता महोदय ने पंद्रह दिनों में प्रतिवेदन दिया. उसके अनुसार पुल की लम्बाई डेढ़ मिल रखनी होगी और चित्रांकन के अनुसार साढ़े नौ करोड़ रुपए खर्च होगा. भैया जी ने मुस्कुराते हुए प्रतिवेदन रख लिया. अगले दिन पुल पर बैठक बुलाई गयी. हिसाब जोड़ा गया. पुल की लागत साढ़े नौ करोड़, ठीकेदार का लाभ डेढ़ करोड़, सहायक अभियंता बीस लाख, कार्यपालक अभियंता पच्चीस लाख, अधीक्षण अभियंता पचास लाख, मुख्य अभियंता एक करोड़, विभागीय बाबू दो लाख, बड़े बाबू पाँच लाख, प्रशाखा पदाधिकारी दस लाख, उप सचिव बीस लाख, अपर सचिव तीस लाख, अपर सचिव चालीस लाख, सचिव डेढ़ करोड़, मंत्री जी के आप्त सचिव साठ लाख, मंत्री जी पाँच करोड़, कुल बाइस करोड़ बाइस लाख, कोषागार और अन्य पर खर्च लेकर कुल पच्चीस करोड़ में ठिका दिया जाए. कालांतर में ठिका भैया जी के साले को मिला, भैया जी विभागीय मंत्री जो थे. पुल का शिलान्यास धूमधाम से हुआ. अगले सात वर्षों में अतिरिक्त सत्रह करोड़ लगाकर पुल का निर्माण हुआ. भैया जी ने गाजे -बाजे के साथ उद्घाटन किया. अगले माह पुल के सीमेंट, छड़, गिट्टी, बालू और अलकतरे की आपसी पहली बैठक हुई. सभी अपनी कमी और घटियापन का रोना रोने लगे. तभी पुल की आत्मा प्रकट हुई और कहा कि मेरी लम्बाई आधी काट दी गयी. सभी अंगों ने कहा हमलोग तो एक चौथाई ही लगे. पुल की आत्मा बहुत दुःखी हुई और सभी अंग फूट -फूट कर रोने लगे. आपस में निर्णय हुआ कि जनता इस वर्ष अत्यधिक गर्मी से त्राहिमाम करती रही, नदियाँ भी अब क्रोधित होने लगीं, लोग प्रकृति और उसकी देनों से खिलवाड़ करने लगे हैं, प्रकृति से प्रेम करना तो दूर उसकी उपेक्षा करते हैं, प्रदूषण के कीर्तिमान गढ़ रहे हैं. अपनी वातसल्य धरा रोती है, जो हमलोगों से देखा नहीं जाता. इसलिए विरोध स्वरूप पहले हमलोग सच्चे स्वदेशी होने के नाते गाँधी जी के बताये पथ पर चलते हुए असहयोग आंदोलन करेंगे. फिर एक आम आदमी की भांति कष्ट से तंग आकर और अपने को निरीह पाकर हमलोगों को आत्महत्या कर लेनी चाहिए. अगली माह पूरे के पूरे पुल ने आत्महत्या कर ली. यह समाचार धीरे – धीरे आस -पास फैला, जिसे सुनकर आस -पास के सत्रह पुलों ने भी कुछ ही दिनों के अंतराल के बाद पहले पुल की संवेदना में अलग -अलग समय पर आत्महत्या कर ली. खूब हंगामा हुआ. जाँच बैठी. दस वर्षों के बाद जनता के भारी दबाब में जाँच प्रतिवेदन सच्चा समर्पित किया गया. जाँच दल ने विशुद्ध भारतीय ढंग से आध्यात्मिकता को जाँच का आधार बनाया. यज्ञ के द्वारा पुलों की आत्माओं को विधिपूर्वक आहूत किया गया.फिर उनके प्रकट होते ही पुलों की आत्माओं से सम्पर्क किया गया और सच जानकार घटना के एक ही कारण बताए गए गए – पुलों ने आत्महत्या कर ली. अब उन पुलों के पुनः निर्माण के लिए फिर से बैठक होने लगी है, पूर्व की भाँती प्रक्रिया चल पड़ी. हिसाब लगाए जाने लगे हैं. भैया जी अब और अधिक सक्रिय और सतर्क हैं. जनता पहले की तरह बिना पुलों के रहने को अभ्यस्त हो चुकी है!
नींद खुलते ही स्मरण हुआ कि स्वप्न में त्रिजटा माता सीता को कह रहीं हैं –
यह सपना मैं कहहुँ विचारि
होइहीं सत्य गए दिन चारि !