आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि है. आज के दिन गुरु पूजन का बहुत महत्व है. सनातन धर्म में गुरुओं को ईश्वर के समान माना गया है. ब्रह्म पुराण के अनुसार गुरु की प्रतिष्ठा राजा अथवा देवता से कम नहीं.( ब्रह्म पुराण 4.3.37.59). कहा गया है –
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाँव,
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविन्द दियो बताए !
हम गुरुओं के प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव रखते हैं.गुरु के आशीष से विकास और वृद्धि होती है. गुरु के ज्ञान से जीवन में पूर्णता, संतुष्टि, शक्ति, साहस, एकाग्रता, विचारों की स्पष्टता, हृदय की शुद्धता की प्राप्ति होती है और व्यक्ति धर्म और सत्य के मार्ग पर अग्रसर होता है.
इसीलिए कहा गया –
गुरु ब्रह्म, गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः !
गुरु सेवा से प्राप्त ज्ञान के संदर्भ में एक श्लोक और है –
विनयफलं शुश्रुषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम.
ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः.
अर्थात सेवा (श्रुषा ) सेवा का फल है और गुरु सेवा का फल ज्ञान है. उसी भांति ज्ञान का फल विरक्ति है तथा विरक्ति का फल आश्रव निरोध अर्थात बंधन मुक्ति, मोक्ष है. ज्ञान मार्गदर्शन देता है, सत्य की ओर अग्रसर कराता है. सत्य विरक्ति देता है. विरक्ति बंधनों से मुक्ति अर्थात मोक्ष देता है. ग्यानी समदर्शी होता है.
गुरु पूर्णिमा से संबंधित एक पौराणिक कथा है. जिसके अनुसार प्राचीन समय में ऋषि पराशर और अत्यंत लावण्यमयी निषाद कन्या सत्यवती से एक पुत्र का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ. कालांतर में यह पुत्र वृहद प्रतापी विद्वान् हुए जिन्हें वेदव्यास कहा गया. महर्षि वेदव्यास ने अठारहों पुराण, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा और महाभारत जैसे महान ग्रंथों की रचना की. इन्हें द्वैपायन भी कहा गया. इनके सम्मान में इनके अवतरण दिवस गुरु पूर्णिमा के रूप में सनातनियों द्वारा मनाया जाता है. गुरु पूर्णिमा के संबंध में श्रीकृष्ण संदीपनी कथा और भी है. ( भाग 10.80.28.43). जिसके अनुसार मध्य प्रदेश के उज्जैन जनपद के अंकपात क्षेत्र में महर्षि सांदीपनि के आश्रम को संसार की पहली पाठशाला कहा जाता है. मान्यता यह है कि 5266 वर्ष पूर्व कंस के वध करने के बाद ग्यारह वर्ष सात दिनों की अवस्था में श्रीकृष्ण आषाढ़ पूर्णिमा के ही दिन गुरु महर्षि सांदीपनि के गुरुकुल में भ्राता बलराम के साथ आए थे. यहीं श्रीकृष्ण ने चार दिनों में चारोँ वेद, छः दिनों में छः शाश्त्र, सोलह दिनों में सोलह विद्याएं, अठारह दिनों में अठारहों पुराण सहित कुल चौंसठ दिनों में चौंसठ अलग -अलग कलाओं का ज्ञान अर्जित किया था.यहीं उनकी भेंट सुदामा से बालमित्र और सहपाठी के रूप में हुई थी. महर्षि सांदीपनि के आश्रम में गुरु पूर्णिमा के दिन विशेषकर विश्व भर से असंख्य श्रद्धालु पंहुचते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भगवा ध्वज को गुरु मानकर उसका विधि -विधान और श्रद्धा से पूजन किया जाता है.
हिंदी साहित्य की दृष्टि से देखा जाए तो गुरु का अर्थ भारी; भारयुक्त; बड़ा.; दुष्पाच्य; पूज्य; महत; कठिन; दीर्घ; प्रिय; दर्पपूर्ण; दुर्दभ; शक्तिशाली; पिता; पूज्य पुरुष; शिक्षक; विद्यादाता; कोई कला, विद्या सिखाने वाला; गायत्री मंत्र का उपदेश करने वाला; देवताओं के गुरु वृहस्पति; पुष्य नक्षत्र; द्रोणाचार्य; परमेश्वर आदि. है. वहीँ पूर्णिमा का अर्थ शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि, पूर्ण चन्द्रमा के प्रकाश से आच्छादित आदि होते हैं. दोनों शब्दों को मिलाकर साधरण अर्थ देखा जाए तो यह श्रेष्ट विद्वान् के द्वारा ज्ञान की शीतलता भरे प्रकाश रूपी आशीष प्राप्त करने के आशय में प्रत्युत होता है.
और ज्ञान की बातों के पश्च्यात अब अंत में गुरु पूर्णिमा से जुड़े आज के अद्यतन प्रसंग की चर्चा लगे हाथ कर लेता हूँ. आज ही प्रातः के छः बजते – बजते रामलाल का भारी स्वर बाहर सुनाई दिया. उत्सुकतावश बाहर झाँका तो देखा कि झकझक श्वेत खादी के अंगरखे – धोती में ऊपर से गेरुआ बंडी और उसके ऊपर भारतीय ध्वज के तिरंगे रंग के अंगवस्त्र गले में लटकाये रिक्शा पर बैठ कर कहीं जा रहे हैं. अभी दोपहरिया तीन बजे वे लौटे हैं और सीधे मेरे पास आए, ऐसा उन्होंने उपकार करने के भाव से बताया. मैं चुप रहा. सोफे पर पसरते हुए उन्होंने कहा – आज थक गया, थकान मिटाने और आपको प्रायौगिक ज्ञान देने के लिए आया हूँ. सम्भव है कि मेरी बातों के सूक्ष्मतापूर्वक चिंतन से आपके ज्ञान चक्षु खुलें और आप मुझे गुरु मान लें और मेरा सम्मान का सुख प्राप्त कर लें. मैं मुस्कुराया और संकेत से उन्हें अपनी बात कहने को कहा. रामलाल बोले – मैं प्रातः काल से अभी तक चौदह गुरुओं का सम्मान कर चुका हूँ और आपके यहाँ से जाकर और कई गुरुओं का सम्मान करना है. सबसे पहले मैं ने रास्ते में चौदह पुष्पगुच्छ खरीदे. पहला पुष्पगुच्छ पान दूकान वाले रामु को दिया. क्योंकि इस शहर में पहले गुरु वही थे. गाँव से शहर आते ही मुझे कहीं रहने और अर्थोपार्जन की समस्या हल करने का गुरुमंत्र रामु ने दिया. मैं खंडहर होते एक खाली सरकारी आवास में घुस गया. अर्थोपार्जन के लिए कल्लू उस्ताद से मिला. दूसरा पुष्पगुच्छ मैंने कल्लू उस्ताद को दिया. कल्लू उस्ताद ने मुझे सफलतापूर्वक जेब काटना और भिक्षाटन कराने वाले गिरोह बनाना सिखाया. उसके बाद मैं अपराधी पांडे गिरोह के सरगना विवेक पांडे से कल्लू की पैरवी पर मिला. विवेक गुरु ने मुझे कट्टा चलना ही नहीं सिखाया बल्कि मुझे कट्टा भी दिया. उनके मार्गदर्शन पर हमने कई छिनतई, लूट और डकैतियाँ की. लेकिन गुरु कृपा से मेरा नाम कहीं नहीं आया. इसी क्रम में सिपाही मथुरा जी से मिला. विवेक गुरु के यहाँ से मैं थाने में मथुरा जी से मिला. मथुरा जी के मार्गदर्शन में ही मैंने स्वयं का बड़ा गिरोह बनाया और बड़ी सम्पत्ति स्वयं भी अर्जित की और उन्हें भी कराया. तभी रामदीन जी ठीकेदार गुरु के रूप में मिले. उसके बाद मैं सीधे रामदीन गुरु के घर गया. रामदीन जी ने मुझे ठीकेदारी के दांव – पेंच सिखाये और ठिका लेकर बिना काम किए पूरी राशि निकालना सिखाया. उसके बाद सेठ गिरधारी लाल मेरे गुरु हुए और उन्होंने कागज पर सरकारी आपूर्ति के गूर सिखाए. इसी क्रम में हर सरकारी विभाग के बाबू और बाबुओं के सम्पर्क में आते ही उनको गुरु बना लिया. तब मैं ट्रांसफर -पोस्टिंग से लेकर सभी न होने वाले सरकारी कार्यों को कराने में दक्षता प्राप्त करने लगा. बिना परिश्रम के सेटिंग के बल पर सबसे अधिक लाभ यहीं हुआ. आठ ऐसे गुरुओं से मिलकर आपके पास आया हूँ. आपके यहाँ से कई अधिकारियों और तीन भैया जी से भी मिलना है. आज मुझे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है. कई कोठियाँ और फ्लैट हैं. किराए से लाखों रुपए आते हैं, लेकिन किसी को इसकी हवा नहीं लगी. मैं आज सफल और सम्पन्न व्यक्ति हूँ.बस सादा जीवन, निम्न विचार !
मैंने उनको हाथ जोड़कर यही कहा – आपने अपने गुरुओं का बखान तो किया, लेकिन यह नहीं बताया कि किस गुरु को आपने क्या -क्या दक्षिणा दी. बिना दक्षिणा के गुरु के ज्ञान और उनके आशीष फलित नहीं होते. आप तो लेने, बटोरने और तो और हंसोत्तने पर विश्वास रखते हैं.आप स्वयं गुरु नहीं गुरु घंटाल हैं. यह सुनते ही रामलाल भड़क गए और बिना कुछ बोले उठकर चले गए.
प्रसंग के साथ लेख भी खत्म !