एक सैनिक ने कहा – माँ एक अलौकिक शब्द है. भारत मेरी माता है और तभी हम भारत माता की जय बोलते हैं. मेरी अपनी माता ने मुझे बताया है कि पहले मैं भारत माता का पुत्र हूँ. इसलिए इसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान भी देना पड़े तो वह कम है.
एक भारतीय वैज्ञानिक ने कहा – भारतीय होने से बड़ा गर्व मुझे कुछ नहीं. भारत माता के गर्व को ऊँचा रखने के लिए हम दिन – रात एक कर अनुसंधान में लगे रहते हैं. खाने की सुधबुध भी नहीं रहती. मन में बस एक ही लगन लगी रहती है कि कुछ ऐसा बड़ा काम करूँ कि भारत माता का आदर पूरा विश्व करे.
एक किसान ने कहा – धरती हमारी माँ है. कितना अलौकिक शब्द है यह. यह हमारा भरण – पोषण करती है. असंख्य पीढ़ियों से हमें पाल रही है. जिंतने अनाज, दलहन, तेलहन, साग-सब्जियों के बीज इन्हें सौंपता हूँ, यह माँ उसे असंख्य कर हमें लौटा देती है. हमने जाने -अनजाने इस माँ पर कितने अत्याचार किए, कितना दूषित किया, कितनी हानि पँहुचाई, लेकिन धरती माँ ने कृपा करने में कभी कोई कमी नहीं की.
एक मजदूर बोला – जीवन की कठिन परिस्थिति ने मुझे सिखाया है कि पुल्लिंग होते हुए भी परिश्रम मेरी माँ है. यही मुझे और मेरे परिवार को पालती है, मुझे शक्ति देती है.
एक व्यापारी ने कहा – माता लक्ष्मी मेरी माँ है. जब से साथ रहने लगी, मेरा जीवन की बदल गया. सारे सम्बन्धी, मित्र मुझे आदर देते हैं. मैं व्यापार में उल्टे -सीधे काम सिर्फ इसलिए करता हूँ कि माँ प्रसन्न रहें. आज सुख – समृद्धि -ऐश्वर्य सब माँ की ही कृपा से है. बस माँ को रूठने नहीं देता, चाहे छः – पाँच, उन्नीस – बीस जो करना पड़े.
एक लेखक ने कहा – माता सरस्वती मेरी माँ है. कितना अलौकिक शब्द है यह. आज जो भी मान -सम्मान मुझे मिला है, बस माँ की सेवा से ही मिला है. सोचकर कुछ लिख नहीं पाता. जब माँ कहती है, मेरी लेखनी पकड़कर लिखवाती है, तभी मैं लिखता हूँ. मेरा लिखा जो कुछ भी है, सब माँ का ही है. जब तक साँस है, माँ की सेवा करता रहूं, यही माँ से माँगता रहता हूँ.
भैया जी ने कहा – कुर्सी ही मेरी माँ है. कितना अलौकिक स्वरूप है इसका. माँ की गोद में बैठते ही मैं इतराने लगता हूँ. मेरे पापों से मेरी रक्षा यही माता करती रहती हैं. मेरी उच्चश्रृंखलता, निम्न आचरण, गिरे चरित्र और भ्रष्टाचार को भी चुपचाप सहन कर लेती है. कितनी दयालु है. कभी – कभी रूठ जाती है तो विपक्ष में बैठना होता है अथवा विधान सभा से बाहर रहना पड़ जाता है. फिर माता प्रसन्नता यज्ञ पूरे विधि – विधान से करना पड़ता है. बहुत चोंचले हैं, बहुत पापड़ बेलना पड़ता है. लेकिन जब माँ मिल जाती है तो सारे कोर -कसर निकाल लेता हूँ.
एक आम आदमी बोला – हमने माँ को ठीक से देखा भी नहीं था कि वे सर्वदा के लिए चली गयीं. मेरे पिता ने ही माँ का भी प्यार दिया. आज एक अच्छा नागरिक हूँ, कानून का पालन करता हूँ, समय पर कर चुकता हूँ. जो बचता है, अपने जैसे बिना माँ के बच्चे को खोजकर उसका भार उठता हूँ. कितना अलौकिक शब्द हैं न – माँ. यह कहते – कहते वह रो पड़ता है.