रहस्यमय रिश्ता… — डॉ. प्रशान्त करण

आज अजीब वाकिया हुआ। तड़के सुबह रवि बाबू अपनी फटफटिया से मुझे साथ लेकर रामलाल जी के यहाँ पहुँच गए। दस मिनट तक साँकल बजाने पर अंततः रामलाल जी ने उठकर दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही रवि बाबू अपनी रामायण लेकर शुरू हो गए। बोलने लगे – भाईसाहब, आज मेरा दुःख सेटेलाइट की ऊँचाई पर है। कल रात से घर में घमासान माहौल बना है। पत्नीश्री का पारा सातवें आसमान पर है। उसके अचानक व्यवहार से मैं हतप्रभ रह गया था। क्या कुछ नहीं कहा गया, क्या कुछ नहीं बीती। मैंने बात समझाने की भरपूर कोशिश भी की। पर वह कभी मेरी सुनती नहीं, सो कल भी चुप करा दिया गया। मेरे पास चुपचाप सहन करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। कल रात खाना भी नहीं मिला। अभी सुबह उसकी नींद लगते ही भागकर आया हूँ, घर का दरवाजा ओठगां दिया है। बात करने से मन हल्का होता है।

रामलाल – भाईसाहब, यह तो खुलासा कीजिए कि आखिर वजह क्या थी?

रवि बाबू – पहले एक ग्लास पानी पीने दीजिए। सहज हो जाऊं तो बताऊं।

करीब पाँच मिनट के बाद रवि बाबू ने बोलना शुरू किया – एक बुजुर्ग महिला है। मेरे मातहत थी। काम में निपुण। कार्यालय का कोई भी काम कहता, बिना त्रुटि के समय पर करती। कभी-कभी स्वयं से ही काम कर डालती। ऐसे मौकों पर मेरा दृष्टिकोण फोन कर लेती और फिर उसी तरह काम हो जाता। आज शाम उसका फोन आया था। उसे निजी मदद यह चाहिए था कि उसके बीमार पति के लिए उसे बढ़िया फिजियोथेरेपिस्ट की जरूरत थी, जो घर जाकर अपनी सेवाएं दे सके। फोन पर उसका नाम देख और उसकी आवाज सुनकर घर में मानो ज्वालामुखी ही फूट पड़ा। बाद में बात करता हूँ कहकर मैंने फोन रख दिया। भाईसाहब, कई रिश्ते ऐसे होते हैं, जो घर के सदस्यों को अच्छे नहीं लगते, उन्हें नहीं भाते। जिन्हें आप कलह की वजह से गोपनीय रखते हैं। अगर वह व्यक्ति कोई स्त्री हुई तो आप घर की स्त्री का मनोविज्ञान तो समझते ही हैं। इन रिश्तों को “रहस्यमय रिश्ता” कह दिया जाता है। अधिकतर ऐसे रिश्ते पवित्र होते हैं, पर रहस्यमय करार दिए जाते हैं। यह कहकर रवि बाबू फूट-फूट कर रोने लगे।

रामलाल – और कितने रहस्यमय रिश्ते हैं आपके?

रवि बाबू – दो और हैं। बताता हूँ। जब मैं कॉलेज में पढ़ता था, तब वकालत की पढ़ाई कर रहे हमारे अच्छे मित्र सिद्दीकी घर आते। वह हमेशा ही घर में घुसने और घर की बातों में टाँग अड़ाने के फिराक में रहता। माता-पिता और छोटे भाई उससे काफी चिढ़ते। कहते – घर को क्लब हाउस समझ रखा है क्या? जब कभी मैं उसके घर जाता, वह ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करता कि उसके घर के बाहरी बरामदे से आगे अपनी ड्राइंगरूम तक मुझे नहीं जाने दिया जाता। पर वह बड़ा बुद्धिमान था, उसके तर्क और उसकी सलाह उत्तम हुआ करती थी। इसलिए घरवालों की हिदायत कि उससे दोस्ती मत रखो, हमने छिपकर उससे सम्बन्ध रखे। छोटे भाई को पता चल गया। उसने धीरे से मुझे कहा – बड़ा रहस्यमय रिश्ता है जी। दूसरे व्यक्ति पांडा जी रहे। वे हमारे सहकर्मी और मातहत थे। कोई भी जटिल से जटिल काम उनको समझाकर सौंपता, तो वे श्रीमान समय से पहले ही उसे ठीक-ठाक पूरा कर डालने में माहिर थे। कार्यालय की गोपनीयता उन्होंने कभी नहीं तोड़ी, जैसे भरोसा। पर उनके साथ एक दिक्कत थी। वे बड़ी गंदगी से रहते। उनके बदन से हमेशा बदबू आती रहती। आदतें गन्दी। मेरे घर में उनके आने पर अघोषित प्रतिबंध अन्तःपुर से लगा दिया गया था और मुझे सम्बन्ध न रखने की कड़ी चेतावनी भी दी गयी थी। पर उस अच्छे और भरोसेमंद इंसान से मैंने छिप-छिप कर सम्बन्ध रखा। मेरे दूसरे एक दोस्त को यह बात मालूम हो गयी। वह हमेशा पांडा जी के बारे में मुझसे अकेले में कहता – बड़ा रहस्यमय रिश्ता है आपका।

रामलाल – रवि बाबू, आप ऐसे ही रहस्यमय रिश्ते से डरे बैठे हैं। आपको हम बताते हैं। अपने भैया जी को ही लीजिए। अरे भैया जी वही, हमारे विधायक जी जो आजकल मंत्री महोदय हैं। वे अन्य सभी दलों के नेताओं की जमकर सरेआम बुराई करते, उनकी बखिया उधेड़ते। अपशब्द तक अपनी औकात से सार्वजनिक रूप में कह डालते। उन लोगों पर कानूनी करवाई कराकर जेल भेजने की बात हर प्रेस कांफ्रेंस में खुलेआम करते। जिस किसी दल की सरकार बनती, वे दल बदल कर मंत्री बन बैठते। सत्ता पक्ष के मंत्री-नेता लोगों को महीने में एक दिन घर बुलाकर जबरदस्त पार्टी देते। पर अमूमन खाली रहे तो हर रविवार रात में बारी-बारी से विरोधियों को अपने फार्म हाउस में चुपके से बुलाते। उन्हें खुश करने के हथकंडे जैसे शराब-कबाब-शबाब में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखते। खूब ठहाके लगाते। पर कभी कोई कार्रवाई नहीं करते। यह सब उस रहस्यमय रिश्ते की मांग है।

रवि बाबू (आश्चर्यपूर्वक) – अच्छा! ऐसा भी होता है क्या?

रामलाल – सुनो भाईसाहब, आप चंद्रा जी बिल्डर को जानते हैं?

रवि बाबू – अरे, शहर में चंद्रा बिल्डर को कौन नहीं जानता। बड़ा मोटा पार्टी है। बीसियों बड़े-बड़े अपार्टमेंट उन्होंने बनाये हैं। कितने मॉल और बना भी रहे हैं। वही न, जो नेता जी को सरेआम, खुलकर गाली देते हैं। उनके खिलाफ अनाप-शनाप बोलते रहते हैं।

रामलाल – हाँ, हाँ वही। वे हर शनिवार को नेता जी के प्राइवेट घर में जाकर उनके साथ ऐश-मौज करते हैं। नेता जी की अवैध कमाई का निवेश उनकी कम्पनी में होता है। बहुत अफसरों की काली कमाई भी उन्हीं की कम्पनी में निवेशित है। जिनका भी निवेश होता है, चंद्रा बाबू सरेआम उसको गाली देते रहते हैं, ताकि राज, राज ही बना रहे। कोई शक भी न कर पाए। यह रहस्यमय रिश्ते का ही उदाहरण है।

रवि बाबू – बाप रे! चंद्रा जी तो बड़े भयंकर टाइप के आदमी हैं।

रामलाल – अब अन्तिम उदाहरण भी सुन ही लीजिए। अपने रामदीन बाबू। शहर के सबसे बड़े गल्ला व्यापारी। उनका कारोबार पूरे देश में फैला है। अभी रमेश बाबू आगरा गए थे। वहाँ से रामदीन बाबू का एक खुलासा लाये हैं। आगरे में रामदीन बाबू का मसाले के निर्यात का बड़ा कारोबार है। यह काम रेवती देखती है। बला की खूबसूरती पायी है उसने। कहा जाता है कि पहले वेश्यावृत्ति करती थी। रामदीन बाबू से सम्बन्ध होने पर उन्होंने उसे कामकाज देखने में लगा रखा है। पचास हज़ार रुपए महीना देते हैं। इसलिए वे महीने में पंद्रह-पंद्रह दिन रेवती के पास रहते हैं। यह हुआ एक और नमूना – रहस्यमय रिश्तों का।

रवि बाबू, आप एक फुंसी से परेशान हैं और वहाँ लोग भगन्दर लिए घूम रहे हैं।

रवि बाबू माथा पकड़कर बोले – रामलाल जी, बड़ा एहसान होगा, ज़रा मेरी घरवाली को भी यह ज्ञान बता दीजिए। मुझपर हो रहा जुल्म शायद बन्द हो जाए।

रामलाल – दिन में बढ़िया खाना बनवाये, आते हैं।

रवि बाबू – घर जाकर खबर करते हैं।

इतना कहकर रवि बाबू डरते-डरते घर चले गए। रात होने को है। रामलाल जी रवि बाबू के फोन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, पर कोई खबर नहीं आ रही। रवि बाबू को उसके बाद घर से निकलते नहीं देखा गया है। अकबत्ते उनके घर से उनकी पत्नी की ऊँची आवाज पड़ोसियों को लगातार सुनाई दे रही है। शायद रवि बाबू खतरे से बाहर नहीं निकल पाए हैं। क्या आप उनकी मदद करेंगे?