साधो ! कहा जाता है कि समय गतिशील है . भगवान बुद्ध ने साँसों की यात्रा को जीवन माना , जो निरंतर गतिशील है . महाकवि नीरज ने समय को जीवन न मानकर , भगवान बुद्ध के दर्शन को आगे बढ़ाते हुए समय को आत्मा कहा . साँसों के समय की गति से चलती आत्मा की यात्रा को निश्चित माना और कहा कि आत्मा साँसों के समय की गति से पूर्व निर्धारित अवधि तक चलती है . जीवन के समय की गति ऐसी है कि कोई यहाँ रुके नहीं .
रुके नहीं कोई यहाँ , नामी हो कि अनाम .
कोई जाए सुबह को , कोई जाए शाम !
साधो ! इसके विलोम कुछ सयाने साधकों के लिए समय की गति धीमी और रुक -रुक कर चलती है . समय की गति का ठहराव उन्हें सफलता के साथ सम्पन्नता भोगने को छोड़ देता है . शिव को कालातीत माना गया है , समय से परे . सफलता के साथ सम्पन्नता की साधना में सुख के शिवत्व को साधक जुगाड़ लगाकर साधना के बल पर प्राप्त कर लेता है . उनके लिए समय की गति सुख की चांदनी में उर्ध्वगामी होकर बढ़ती रहती है . हम आम जनों के लिए समय की गति कड़कती कष्ट की धूप में धीमे चलती है . यह आज कल के समाजिक समय की गति का सिद्धांत गति को प्राप्त है . साधक समय की गति के साथ चलते हैं और साधना के सिद्धांतों से चिपके हुए समय की गति पर नियंत्रण पाकर शेष जीवन सफलता के शिखर की यात्रा और ठहराव के साथ प्रचुर मात्रा में सम्पन्नता का बोझ लिए आनंदचित्त हो जाते हैं . उन्होंने अपनी साधना में समय और समय की गति को पहचान जो लिया था !
साधो ! मतदान मात्र करने तक सीमित जनता समय से युद्धरत रहते हुए खराब समय को टालने में अपनी इहलीला समाप्त कर देते हैं , फिर भी न अच्छा समय उनके वश में आता और न ही समय की गति को पकड़ पाते अथवा उसे पहचान भी पाते हैं . नतीजा यह होता है कि हम समय की गति से कम गति में समय का पीछा करते हुए दुर्गति से लेकर सद्गति को प्राप्त होते हैं . वहीं सफलता के साथ प्रचुर सम्पन्नता के साधक समय से आगे निकल जाते हैं और नाना प्रकार से स्वर्गिक सुखों का आनंद लेते हुए साँसों की यात्रा करते हैं .
साधो ! जिस किसी साधक ने भी समय की गति को जाना , पहचाना , परखा और सफलता के साथ सम्पन्नता की साधना के हर सूत्र का कठोरता से पालन किया वह समय की गति ऐसी पकड़ी कि मानो समय को अपने वश में किया . वह जब चाहता किसी के लिए भी समय की गति को इस प्रकार नियंत्रित कर डालता कि अपने हिस्से का भी बुरा , खराब समय उसके बुरे समय में मिलावट बड़ी चतुराई से कर देता और उसके हिस्से का भी अच्छा समय स्वच्छन्दत्ता से ,चुपके से अपने नाम खिसका कर डालता है . समय अथवा समय की गति उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती . साधो ! इस साधना के लिए साधक को काइयाँपन , धूर्तता , अमानवीयता , दुष्टता आदि सद्गुणों को निरंतर प्रखर करता रहता है . साधो ! देख लो , जो निभे उसे साधकर समय की गति को पहचान कर अपने नियंत्रण में कर ही डालो ! ईश्वर तुम्हें सफल बनावें !
अस्तु !
– प्रशान्त करण