उजड़ा बाग —- कल चमन था , आज उजड़ा बाग है । थीं गूँजती किलकारियाँ , हर रोज मेरे आँगन में । कभि नाचती थीं…
View More उजड़ा बाग…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रMonth: May 2025
गृहलक्ष्मी का आदर मान करो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
गृहलक्ष्मी का आदर मान करो —- वह पिता बड़ा बड़भागी है , जिसने बेटी को जनम दिया । पाला पोषा और बड़ा किया , अपरिमित…
View More गृहलक्ष्मी का आदर मान करो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रभारत-पाक युद्ध और पत्रकारिता: जब हर शब्द देश का प्रहरी हो
सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ युद्ध का दौर है दोस्तो। गोलियां चल रही हैं, मिसाइलें दागी जा रही हैं, दुश्मन के इलाके में…
View More भारत-पाक युद्ध और पत्रकारिता: जब हर शब्द देश का प्रहरी होचेतो मानव ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
चेतो मानव —- यह सूर्य है इतना तपता क्यूँ ? क्यूँ धरती इतनी गरम हुई ? सरोवर का जल सूख गया क्यूँ ? नदियाँ क्यूँ…
View More चेतो मानव ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रनारी …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
नारी —- हम दे न सके वह आदर , जिसकी वो थी हकदार । कहने को देवी बनाया , पर किया नहीं सत्कार । जिसने…
View More नारी …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रकौन हो तुम ? …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
कौन हो तुम ? —- सागर सी गहरी आँखों वाली , कौन हो तुम ये मुझे बता । सूरज की क्या प्रथम किरण हो ,…
View More कौन हो तुम ? …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रथोड़ा “ज़िंदगी जीने की क्लास” भी ज़रूरी है
सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ चलिए, सीधी बात करते हैं — हम सबने स्कूल और कॉलेज में खूब पढ़ाई की है। गणित में पसीना…
View More थोड़ा “ज़िंदगी जीने की क्लास” भी ज़रूरी हैअब नहिं शहर सुहात…ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
अब नहिं शहर सुहात —- गावँ छोड़ कर शहर को आया , अब नहिं शहर सुहात । घुटन भरी यह जिन्दगी , कैसे पाउँ निजात…
View More अब नहिं शहर सुहात…ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रकहाँ गए वे दिन ? …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
कहाँ गए वे दिन ? —- चारु चन्द्र की चंचल किरणें , बरस रही थीं आँगन में । खेल रहे थे लाल हमारे , आँख…
View More कहाँ गए वे दिन ? …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रजाने कहाँ गए वो दिन…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
जाने कहाँ गए वो दिन —- जाने कहाँ गए वो दिन ??????? न बाग न बगिया न फूस की चटाई । न बरगद की छाँव…
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