लाल बहादुर शास्त्री: भारत उत्थान के वास्तुकार

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

लाल बहादुर शास्त्री जी भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता और एक सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के धनी थे, जिनका दृष्टिकोण और नेतृत्व स्वतंत्र भारत के नवनिर्माण में मील का पत्थर साबित हुआ। शास्त्री जी का प्रधानमंत्री काल भले ही संक्षिप्त था, लेकिन उनके नेतृत्व ने देश को कई मोर्चों पर मजबूती प्रदान की। उनकी नीतियाँ, उनके कार्यान्वयन और देश के उत्थान पर उनके वास्तविक प्रभाव को आज भी भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वर्तमान संदर्भ में, शास्त्री जी की नीतियों और उनके कार्यों को पुनः समझना अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि उन्होंने देश की कृषि, औद्योगिक विकास, और राष्ट्रीय सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया था।

सादगी और दृढ़ संकल्प का प्रतीक

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी और दृढ़ संकल्प का उत्कृष्ट उदाहरण था। उनका व्यक्तित्व उनके नेतृत्व में भी झलकता था। उन्होंने जनता के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित किया और उनके हर निर्णय में देशहित सर्वोपरि था। शास्त्री जी का विश्वास था कि देश के विकास में हर नागरिक की भागीदारी आवश्यक है। इसी कारण उन्होंने अपनी नीतियों के माध्यम से आम जनता को राष्ट्र निर्माण के कार्य में जोड़ा।

शास्त्री जी की ‘जय जवान, जय किसान’ नीति

शास्त्री जी की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली नीति ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा था। यह नारा न केवल एक भावनात्मक अपील थी, बल्कि देश की कृषि और सुरक्षा नीतियों का आधार भी था। वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और उसके ठीक पहले आए भयंकर अकाल के समय देश को खाद्य संकट और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। शास्त्री जी ने इस नारे के माध्यम से देश के किसानों और सैनिकों को प्रेरित किया।

उनकी ‘जय जवान, जय किसान’ नीति का भारत के कृषि और रक्षा क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। एक ओर उन्होंने किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित किया और हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया, वहीं दूसरी ओर देश की सुरक्षा के प्रति समर्पण को और मजबूत किया। उनके कार्यकाल में हरित क्रांति की नींव रखी गई, जिसने भारत को खाद्यान्न संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हरित क्रांति और खाद्य सुरक्षा

शास्त्री जी का समय भारत के लिए खाद्यान्न संकट का था। 1965 में भारत को खाद्यान्न के संकट का सामना करना पड़ा, और शास्त्री जी ने इस संकट से निपटने के लिए त्वरित और प्रभावशाली कदम उठाए। उन्होंने देश में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए हरित क्रांति की नींव रखी। इस क्रांति के माध्यम से उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग और उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित की गई। शास्त्री जी के नेतृत्व में भारत ने आत्मनिर्भरता की ओर पहला बड़ा कदम उठाया, जिसका प्रभाव लंबे समय तक रहा।

शास्त्री जी ने भारतीय कृषि को आधुनिकता की दिशा में अग्रसर किया और कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। इसके परिणामस्वरूप, भारत धीरे-धीरे खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा और आयात पर निर्भरता कम हुई। उनके इस दृष्टिकोण ने भारतीय किसानों के जीवन को सुधारने और देश को खाद्य संकट से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय सुरक्षा और 1965 का युद्ध

शास्त्री जी के कार्यकाल के दौरान 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ। इस युद्ध में उन्होंने अपने नेतृत्व का अद्वितीय प्रदर्शन किया। शास्त्री जी ने न केवल कूटनीतिक स्तर पर बल्कि युद्ध के मैदान में भी पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। उनके दृढ़ नेतृत्व ने भारतीय सेना को मजबूत मनोबल प्रदान किया और देश की रक्षा क्षमता को मजबूत किया।

शास्त्री जी ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उनके द्वारा लिए गए निर्णयों ने भारतीय सेना को आत्मविश्वास से लबरेज किया और देश को एकजुट किया। इस युद्ध के दौरान उन्होंने अपने शांत और संतुलित नेतृत्व से देश को प्रेरित किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत ने यह युद्ध जीतने के बाद एक मजबूत राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित की।

आर्थिक नीतियां और औद्योगिक विकास

शास्त्री जी की आर्थिक नीतियों का प्रमुख उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाना था। उन्होंने औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया और देश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कृषि और उद्योग के बीच संतुलन बना रहे, जिससे देश का समग्र विकास हो सके।

शास्त्री जी ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को विशेष महत्व दिया और इनके माध्यम से देश के औद्योगिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि उद्योगों का विकास पर्यावरण के अनुकूल हो और यह देश के सतत विकास के लिए आवश्यक हो। उनके समय में शुरू की गई कई योजनाएं आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था के स्तंभ के रूप में काम कर रही हैं।

शिक्षा और समाज सुधार

लाल बहादुर शास्त्री जी का विश्वास था कि शिक्षा और समाज सुधार देश की समृद्धि के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने और समाज के सभी वर्गों तक शिक्षा पहुंचाने पर जोर दिया। उनके कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार हुए और समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए गए।

शास्त्री जी ने यह सुनिश्चित किया कि महिलाओं और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को विशेष शिक्षा योजनाओं के माध्यम से सशक्त बनाया जाए। उन्होंने देश की शिक्षा नीति में ऐसे बदलाव किए, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को भी समान अवसर मिल सके। यह उनके समावेशी दृष्टिकोण का ही परिणाम था कि देश में शिक्षा का विस्तार हुआ और समाज सुधार की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।

आज के संदर्भ में शास्त्री जी की नीतियों की प्रासंगिकता

आज के दौर में, जब भारत विभिन्न आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है, शास्त्री जी की नीतियों का महत्व और भी बढ़ जाता है। उनके समय में कृषि, उद्योग, शिक्षा, और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जो सुधार किए गए, वे आज भी देश की प्रगति में योगदान कर रहे हैं।

शास्त्री जी के ‘जय जवान, जय किसान’ नारे को आज भी भारत में प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा जाता है। उनकी नीतियां न केवल उस समय की चुनौतियों से निपटने में सहायक रहीं, बल्कि उन्होंने आने वाले समय के लिए भी एक मजबूत नींव तैयार की। उनके द्वारा शुरू की गई हरित क्रांति और औद्योगिक विकास के प्रयास आज भी भारत के विकास के स्तंभ बने हुए हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन और उनका योगदान भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। उनकी नीतियां और उनके कार्य आज भी हमें यह सिखाते हैं कि सादगी, दृढ़ संकल्प, और जनता के प्रति सच्ची निष्ठा से देश का उत्थान संभव है। शास्त्री जी ने एक साधारण जीवन जीते हुए असाधारण उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। उनके द्वारा शुरू की गई नीतियाँ और सुधार आज भी भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

वर्तमान समय में, जब भारत कृषि, शिक्षा, और सुरक्षा के क्षेत्र में नई चुनौतियों का सामना कर रहा है, शास्त्री जी के दृष्टिकोण और उनके नेतृत्व से प्रेरणा लेना आवश्यक है। उनके द्वारा दिया गया ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि उनके समय में था।