गजल —- दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें । फासले ये जिन्दगी के, मिल के निपटाते चलें ।। दो कदम तुम…
View More दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें …ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रMonth: April 2025
मोह जनित अज्ञान …..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
मोह जनित अज्ञान —- मोह जनित अज्ञान ते, मानव मन कलुषाय । मत्सरता की आग में, पल पल जरता जाय ।। मानव मन में मैल…
View More मोह जनित अज्ञान …..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रपाकिस्तान, अब तो अपनी ब्लैक मनी को काम में ले ही लो!
-पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ एक ख्याल आया और मुस्कान छूट गई। फिर सोचा — हँसी में टाल देने जैसी भी नहीं है यह बात।…
View More पाकिस्तान, अब तो अपनी ब्लैक मनी को काम में ले ही लो!कि हरि हरि बगिया में डलबो झुलनवाँ…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
एक पत्नी का पती परदेस से घर आया है और पत्नी उत्साह से भरी कहती है कि बाग में झूला लगाऊँगी और आज पिया के…
View More कि हरि हरि बगिया में डलबो झुलनवाँ…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रसखि री कंत न आए ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
एक विरहन अपने प्रियतम के वियोग मे व्याकुल प्रियतम की प्रतिदिन बाट निहार रही है। बावली हुई प्रियतम की खोज में बन बन गली गली…
View More सखि री कंत न आए ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रपिया बिनु बीते नहीं दिन रैन………..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
सावन का महीना, पति परदेश, एक विरहन प्रियतम के विरह में व्याकुल भगवान कृष्ण से अपनी विरह वेदना सुनाते हुए विनती कर रही है कि…
View More पिया बिनु बीते नहीं दिन रैन………..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्ररिमझिम बरसे बदरिया….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
एक पत्नी का पति परदेश से घर आया है। बरसात का मौसम है। बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, रिमझिम वर्षा बरस रही…
View More रिमझिम बरसे बदरिया….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रकश्मीर की आर्थिक उन्नति से विचलित आतंक: पहलगाम पर सुनियोजित हमला
सम्पादकीय: पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ कश्मीर की घाटी एक बार फिर स्थानीय राजनीति और आतंकवादी साजिशों के केंद्र में आ चुकी है। एक ओर केंद्र…
View More कश्मीर की आर्थिक उन्नति से विचलित आतंक: पहलगाम पर सुनियोजित हमलासावन की आई बहार हो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
शिव जी का परम पवित्र सावन मास की मनोहारी सुहावनी छटा का वर्णन मेरी इस रचना के माध्यम से:——– सावन की आई बहार हो, बरसे…
View More सावन की आई बहार हो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रचित्रगुप्त से कही गयी गौरैया पीड़ा कथा -डॉ प्रशान्त करण
चित्रगुप्त जी को अपनी नींद और अपना ऐशोआराम बड़ा प्रिय था। इससे उनके अहंकार का पौधा वटवृक्ष बन खूब फैलने लगा था। परिवारवाद ने यह…
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