भैया सुख दुख आए जाए…….ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जीवन में सुख दुख आते जाते रहते हैं और जो न सुख में हर्षित होते हैं न दुख में दुखी होते हैं वही धीर पुरुष कहलाते हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

भैया सुख दुख आए जाए ।
सुख में हर्ष न दुख की चिन्ता ,
वही धीर कहलाए ।
भैया सुख दुख………..
रामचन्द्र भए अवध कुमारा ,
सुख में समय बिताए ,
समय फिरे तो बन बन भटके ,
दुस्सह दुःख उठाए ।
भैया सुख दुख………..
हरिश्चन्द्र भानू कुल भूपा ,
सुख से राज्य चलाए ,
समय फिरे तो राज्य गवाँ कर ,
डोम के हाथ बिकाए ।
भैया सुख दुख………..
राजा नल ऐसो परतापी ,
प्रजा नित्य गुण गाए ,
द्यूत क्रिड़ा में राज्य गवाँ कर ,
बन बन ठोकर खाए ।
भैया सुख दुख………..
पांडव बन बन फिरत चले ,
दुख का अंत न पाए ,
दिन पलटे तो पाँच गावँ क्या ,
सरबस राज्य हिं पाए ।
भैया सुख दुख………..

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र